इन्वेस्टर मीट और कांग्रेस का विरोध

शांति गौतम 

बिलासपुर

हिमाचल सरकार एक मेगा इन्वेस्टर मीट का आयोजन सात और आठ नवंबर को धर्मशाला में करने जा रही है। इस मीट के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बड़ी तैयारी की है। उन्होंने स्वयं देश-विदेश में जाकर संभावित इन्वेस्टर्स को हिमाचल आने का निमंत्रण दिया है। सरकार  प्रदेश में 85 हजार करोड़ का लक्ष्य रख कर काम कर रही है। देश-विदेश से आकर उद्योगपति एमओयू साइन कर रहे हैं। परंतु दुर्भाग्यवश प्रदेश की विरोधी पार्टी इस सारी कवायद को संदेह की दृष्टि से देख रही है। कांग्रेस का विरोध करना और सवाल करना लोकतांत्रिक अधिकार है। परंतु विरोध के लिए विरोध करना ठीक नहीं है। परिणाम आने से पहले ही सरकार की विफलता की कामना करना कहां तक जायज है। जब कि मुख्यमंत्री जी बहुत ही विनम्रता से कह चुके हैं कि प्रदेश हित में सियासत नहीं विपक्ष के सहयोग की जरूरत है। कांग्रेस सरकारें प्रदेश हित में इस प्रकार के बडे़ कदम उठाने में विफल रही हैं। मुझे याद है 1990 की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री शांता कुमार जब केंद्र से हाइडल बिजली पर रायल्टी की मांग कर रहे थे तो कांग्रेस सारी बात को बहुत हल्के से ले रही थी। जब शांता जी ने निजी क्षेत्र में बिजली उत्पादन की बात की, कांग्रेस कुछ कर्मचारियों, नेताओं के साथ मिलकर इसका विरोध कर रही थी। उस समय केंद्र में कांग्रेस सरकार थी। शांता जी अपनी धुन के पक्के थे। वह विपक्ष के विरोध से निरूत्सहित नहीं हुए और अपनी बात तत्कालीन प्रधानमंत्री जी और बिजली मंत्री जी को समझाने और सहमत करवाने में सफल रहे। उनका तर्क  था कि जब उन प्रदेशों में जहां कोयला या लोहा है, उन्हें रायल्टी मिल सकती है तो हमारे पास पानी है जिससे बिजली का उत्पादन हो सकता है तो हमें रायल्टी क्यों नहीं मिलनी चाहिए। इससे करोड़ों रुपए की आय प्रदेश सरकार को हो रही है। कांग्रेस से मेरा विनम्र आग्रह है कि सरकार ठीक नीयत के साथ निवेश लाने का प्रयास कर रही है और उनके प्रयास में आपको सहयोग करना चाहिए। परिणाम आने तक आपको संयम रखना चाहिए।