आदित्य ठाकरे पर सहमति की कितनी गुंजाइश
वहीं, एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने हमारे सहयोगी अखबार से कहा, ‘कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने बातचीत के दौरान शिवसेना को कह दिया कि (सरकार की) स्थिरता के लिए उद्धव को सीएम चुना जाना चाहिए।’ गठबंधन के सहयोगी इस बात पर अड़ सकते हैं, भले फॉर्म्युला ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का हो या फिर पूरे पांच साल का। कहा जा रहा है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे खुद ही सीएम बनना नहीं चाहते हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि पार्टी के दूसरे दिग्गज या फिर पहली बार विधायक चुने गए 29 वर्षीय आदित्य ठाकरे पर आम सहमति नहीं बन पाएगी। इनमें कोई भी गठबंधन के दोनों दलों को भी स्वीकार नहीं होंगे।
इसलिए भी सबसे पसंदीदा हैं उद्धव
कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण एवं पृथ्विराज चव्हाण और एनसीपी के दो पूर्व उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार एवं छगन भुजबल इस बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। पूरी संभावना है कि गठबंधन सरकार में इन सबको नए मुख्यमंत्री के साथ बेहद करीबी से काम करना होगा। इस कारण भी उद्धव सर्वोच्च पसंदीदा उम्मीदवार के तौर पर उभरे हैं। पार्टी लीडरशिप कांग्रेस-एनसीपी पर दबाव बना रही है कि वे 17 नवंबर तक शिवसेनाके सीएम कैंडिडेट को समर्थन देने का ऐलान कर दें। उस दिन बालासाहेब ठाकरे की पुण्यतिथि है।
शिंदे और देसाई भी
जब एकनाथ शिंदे को शिवसेना की तरफ से महाराष्ट्र विधानसभा और विधान परिषद, दोनों सदनों का नेता चुना गया तो कयास लगाए जाने लगे कि उन्हें ही सीएम कैंडिडेट के तौर पर भी आगे किया जाएगा। वहीं सुभाष देसाई उनसे वरिष्ठ हैं और पार्टी के पुराने नेता हैं। वह कांग्रेस और एनसीपी के साथ नई सरकार के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम (सीएमपी) तय करने वाली समिति में भी शामिल थे।
शिवसेना के अंदर की आवाज
उधर, शिवसेना नेता और विधान परिषद की उपाध्यक्ष नीलम गोरे ने टीओआई से कहा कि वह उद्धव को ही सीएम के तौर पर देखना चाहती हैं क्योंकि वह (उद्धव) दो दशकों से पार्टी का सफल संचालन कर रहे हैं। उन्होंने पार्टी प्रेजिडेंट की खासियतों का बखान करते हुए कहा, ‘उनका हर तरह के मुद्दे पर ध्यान रहता है और वह हरेक मुद्दे का तार्किक समाधान निकालते हैं। वह चाहे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मसला हो या फिर किसानों की दयनीय हालत का। प्लास्टिक बैन से लेकर शिक्षा में सुधार को लेकर भी उनकी अपनी सोच है। वह शिव सैनिकों की पहली पसंद हैं।’