गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप 

क्या आज डेढ़-दो हजार वर्षों में वेद विरोधी मनगढं़त पूजा-पाठ और गीता रामायण आदि के वेद विरोधी मनगढ़ंत अर्थ करने वाले संत आज मोक्ष का उपदेश करें और दो-अढ़ाई वर्ष पहले से क्या कोई मोक्ष पद प्राप्त किए हुए नहीं था। जबकि उस समय आज के वेद विरोधी पंथ नहीं थे…

गतांक से आगे…

जीव की संख्या घटती-बढ़ती नहीं है क्योंकि जीव अनादि है और स्वयंभू अर्थात जन्म-मरण से रहित है। यदि मुक्ति काल का सुख भोग कर जीव वापस पृथ्वी पर न लौटे तो कभी सब जीव समाप्त हो जाएंगे और सृष्टि क्रम में ऐसा कभी नहीं होता। अतःजीव मुक्ति से वापस आता है। दूसरा यदि कोई कहे कि वेद विद्या से तो स्वर्ग की ही प्राप्ति है, मोक्ष की प्राप्ति नहीं है तो ऐसा कहना भी अज्ञान एवं असत्य पर आधारित है क्योंकि यजुर्वेद मंत्र 32/10 में भी कहा है, ‘यज्ञ देना अमृतमानशानास्तुतीये धामन्नध्यैरयंत’ अर्थात अविनाशी निराकार ब्रह्म की भक्ति करके विद्वान लोक मोक्ष का सुख प्राप्त कर लेते हैं। मंत्र में कहा (यत्र धाम) जिस परमात्मा में (देवाः) वेदों के ज्ञाता विद्वान तपस्वी (अमृतम) दुःख रहित मोक्ष सुख को (आनशानाः) प्राप्त करने के लिए(अध्यैरंत) सर्वत्र अपनी इच्छा से विचरण करते हैं।  संपूर्ण वेदों का मुख्य उद्देश्य ही ईश्वर प्राप्ति है। पुनःश्रीकृष्ण महाराज ने कहा,‘त्रयीधर्मम’ पद प्रयोग करते हुए श्लोक 9/20 में कही ज्ञान, कर्म एवं उपासना इन तीनों विद्याओं की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए समझाया है कि हे अर्जुन ! मोक्ष सुख प्राप्त करके वे लोग निश्चिय ही पुनः वेदों में कही तीनों विद्याओं को ‘अनुप्रपन्नाः’ प्राप्त करते हुए ‘कामकामाः’ वैदिक शुभ भोगों की कामना करते हुए इस प्रकार मृत्यु लोक में आते-जाते  रहते हैं।

भारत में यह दुःख की बात है कि एक दो अक्षर वेद के बोलने वाले अथवा वेद विरोधी अविद्याग्रस्त संत अहंकार वश असत्य को सत्य सिद्ध करने के लिए अनादिकाल से चली आई सत्य विद्या का विरोध करते है और कह देते है कि वेद अपरा विद्या है इससे तो केवल स्वर्ग प्राप्त होता है, मोक्ष नहीं।  यह पूर्णतः वेद विरोधी असत्य भाषण है। क्या आज डेढ़-दो हजार वर्षों में वेद विरोधी मनगढं़त पूजा-पाठ और गीता रामायण आदि के वेद विरोधी मनगढ़ंत अर्थ करने वाले संत आज मोक्ष का उपदेश करें और दो-अढ़ाई वर्ष पहले से क्या कोई मोक्ष पद प्राप्त किए हुए नहीं था। जबकि उस समय आज के वेद विरोधी पंथ नहीं थे। इसका यह अर्थ हुआ कि परमात्मा ने तो मोक्ष के सुख का मार्ग वेदों में  नहीं बताया।                         – क्रमशः