गेहूं को नहीं देना पड़ेगा बार-बार  पानी

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने तैयार की अनाज का किस्म, सिर्फ दो बार सिंचाई से मिलेगा भरपूर फायदा

पंचकूला –गेहूं और धान दो फसलें ऐसी हैं, जिनमें पानी की अत्याधिक आवश्यकता होती है। वहीं दूसरी तरफ लगातार घटता जल स्तर चिंता का विषय बना हुआ है। इन सब स्थितियों को देखकर चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (एचएयू) के विज्ञानियों ने गेहूं की ऐसी किस्म तैयार की है, जो सिर्फ  दो बार पानी देने पर ही अच्छी पैदावार देगी। अकसर गेहूं की विभिन्न प्रजातियों में चार से पांच बार किसान खेतों में पानी देते हैं। एचएयू के गेहूं व जौ अनुभाग के विज्ञानियों ने गेहूं की नई किस्म डब्ल्यू एच 1142 विकसित की है। कुलपति प्रोफेसर केपी सिंह ने बताया कि इस किस्म को बनाया ही ऐसा गया है कि कम पानी और खाद की आवश्यकता हो। इसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल व उत्तराखंड उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही विश्वविद्यालय की कोशिश है कि ऐसी किस्में तैयार की जाएं जिनमें कम से कम पानी लगे। धान पर भी हम ऐसा ही प्रयोग कर रहे हैं।

105 दिनों में खिल आएंगी कलियां

इस किस्म की विशेषता यह है कि इसे लगाने के बाद यह जमीन से पोषक तत्वों को स्वतः ही खींचती है। इसमें 105 दिन में कलियां खिल आती हैं, इसके साथ ही 154 दिन में पककर तैयार भी हो जाती है। पकने पर बालियों का रंग सफेद ही रहता है। इस किस्म को बोने के लिए 40 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज, अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर का पहला सप्ताह में बिजाई, इसमें 36 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फास्फोरस, 16 किलोग्राम पोटाश, 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ खाद डाली जाती है। यह एक मध्यम बौनी किस्म है, इसकी औसत ऊंचाई 102 सेंटीमीटर होती है। इसके पौधे सघन व अधिक फुटाव वाले होते हैं। इसकी फसल गिरती नहीं है। यह सूखा भी अधिक से अधिक ङोलने की शक्ति रखती है। वहीं, इसकी इसकी बालियां मध्यम लंबी व सफेद रंग की होती हैं। इसमें 12.1 फीसद प्रोटीन, 3.80 पीपीएम बीटा कैरोटीन, 36.4 आयरन, 33.7 पीपीएम जिंक मौजूद है। इसके अलावा इस किस्म में भूरा व पीला रतुआ अन्य किस्मों की अपेक्षा कम होता है।