जेन कहानियां : गीशो की यशोगाथा

गीशो दस वर्ष की उम्र में जेन साधिका बन गई थी। आश्रम में उसका लालन-पालन लड़कों की तरह हुआ।

सोलह वर्ष की होने के बाद गीशो जेन सीखने की पिपासा में एक से दूसरे आश्रम घूमने लगी।

इसी क्रम में गीशो तीन उंजान और छह वर्ष गुकेई जेन गुरुओं के आश्रम में रही। उसकी जेन पिपासा अब अतृप्त थी।

अंततः वह जेन गुरु इंजान के आश्रम जा पहुंची। गीशों अब एक पूर्ण स्त्री थी। इंजान उसके स्त्रीत्व के प्रति जरा भी रियासत नहीं बरतते थे। वे गीशो पर  तूफान की तरह गरजते थे। उसके आंतरिक स्वभाव को झकझेरने के उद्देश्य से वे कई बार उसके चांटा तक जड़ देते थे।

गीशो ने तेरह वर्ष इंजान के सान्निध्य में बिताए और वह पाया जिसकी उसमें पिपासा थी।

अपनी इस शिष्या के सम्मान में इंजान ने कविता लिखी। पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर गीशो जापान के बांशु प्रांत चली गई।

गीशो ने यहां अपना आश्रम खोल लिया। पंचतत्व में विलीन होने तक गीशो दौ सौ साधिकाएं तैयार कर चुकी थीं।