ड्ढमंत्र सिद्ध न होने पर उपाय

सहस्त्रार्णाधिका मंत्रा दंडकाः पीडिताक्षराः।। 70।।  जिस मंत्र में 10,000 वर्ण से अधिक वर्ण हों उसे पीडि़त मंत्र कहते हैं। द्विसस्त्रिक्षरा मंत्राःखंडशःसप्ताधाश्रिताः। ज्ञात्वयाः स्तोत्ररूपास्ते मंत्रा एते न संशयः।। तथा विद्याश्च बो व्या मंत्रिभिः सर्वकर्मसु।। 71।। जिस मंत्र में 2000 अक्षर हों उसको 6 भाग में बांटकर जप करें। मंत्र क्या,विद्या क्या, जिस किसी की उपासना करनी हो तो इन सब दोनों को जानकर अनुष्ठान करें। दोषानिमानविज्ञाय यो मंत्रं भजते बुधः। सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।। 72।। जो मनुष्य बिना दोष को जाने मंत्र को जपते हैं उसको सौ करोड़ कल्पों में भी सिद्धि नहीं हो सकती है। (अतएव बुद्धिमान पुरुष मंत्रों के दोषों को जान उन दोषों की शांति करके मंत्र जपें)…

-गतांक से आगे…

चतुःशचमथारभ्य यावद्धर्णसहस्त्रकम्।

अतिवृद्धः स मंत्रवस्तु सर्वशास्त्र विर्ज्जितः।। 69।।

400 अक्षर से 1.000 अक्षर तक के मंत्रों को अतिवृद्ध कहते हैं। ये सब शास्त्रों में वर्जित हैं।

सहस्त्रार्णाधिका मंत्रा दंडकाः पीडिताक्षराः।। 70।।

जिस मंत्र में 10,000 वर्ण से अधिक वर्ण हों उसे पीडि़त मंत्र कहते हैं।

द्विसस्त्रिक्षरा मंत्राःखंडशःसप्ताधाश्रिताः।

ज्ञात्वयाः स्तोत्ररूपास्ते मंत्रा एते न संशयः।।

तथा विद्याश्च बो व्या मंत्रिभिः सर्वकर्मसु।। 71।।

जिस मंत्र में 2000 अक्षर हों उसको 6 भाग में बांटकर जप करें। मंत्र क्या,विद्या क्या, जिस किसी की उपासना करनी हो तो इन सब दोनों को जानकर अनुष्ठान करें।

दोषानिमानविज्ञाय यो मंत्रं भजते बुधः।

सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि।। 72।।

जो मनुष्य बिना दोष को जाने मंत्र को जपते हैं उसको सौ करोड़ कल्पों में भी सिद्धि नहीं हो सकती है। (अतएव बुद्धिमान पुरुष मंत्रों के दोषों को जान उन दोषों की शांति करके मंत्र जपें)।

रावण उवाच

भगवंस्त्वत्प्रसादेन मंत्राणां दोषलक्षणम्।

श्रुतं सर्व विधि बूहि मंत्रा दुष्टाः फलप्रदाः।। 73।।

रावण बोला कि हे भगवान! (महादेव) आपके प्रसाद से मैंने सब मंत्रों के दोष और लक्षण सुने,अब कृपा करके उस विधि को कहिए, जिससे यह दोषयुक्त मंत्र शुभफल को दें।

छिन्नादिदुष्टा ये मंत्रास्ते तंत्रे च च निरूपिताः।

ते सर्वे सिद्धिमायांति मातृकार्णपभावतः।। 74।।

शिवजी बोले, हे रावण! तंत्र शास्त्र में जो छिन्नादि दूषित मंत्र कहे हैं। वे मातृकावर्ण के प्रभाव से दोषमुक्त होकर सर्व सिद्धि देते हैं।

मातृकार्णें: पुटीकृत्य मंत्र विद्याद्विशेषतः। 75।।

शतमष्टोत्तरं पूर्व प्रजपेत्फलसिद्धये।।

तदा मंत्रो महाविद्या यथोक्तपदलो भवेत्।। 76।।

मंत्र वा विद्या को मात कावर्ण से पुटितकर 108 बार फल के सिद्धि के निमित जाप करें तो मंत्रों का छित्रादि दोष दूर होकर अभीष्ट फल प्राप्त होता है।