दिगन्यास का अर्थ है, दिशाओं को नमस्कार

दिगन्यास का अर्थ है – दिशाओं को नमस्कार करना। इसमें पूर्व दिशा से आरंभ करके क्रमशः आग्नेय कोण, दक्षिण, नैऋत्य कोण, पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर और ईशान कोण को नमस्कार करते हैं। तत्पश्चात आकाश और भूमि को नमस्कार किया जाता है। जिस दिशा को नमस्कार करना होता है, आसन पर बैठे-बैठे उस दिशा की ओर मुख किया जाता है और हाथ जुड़े रहते हैं। इसमें एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर घूमने के लिए आसन से नहीं उठते हैं। पूर्व के लिए ‘प्राच्यै नमः’, आग्नेय के लिए ‘आग्नेयै नमः’, दक्षिण के लिए ‘दक्षिणायै नमः’, नैऋत्य के ‘नैऋत्यै नमः’, पश्चिम के लिए ‘पश्चिमायै नमः’ का उच्चारण करते हैं…

-गतांक से आगे…

हृदयादिन्यास

पद्मासन की मुद्रा में बैठकर बायां हाथ घुटने पर रखते हुए ‘हृदयाय नमः’ कहकर हृदय का स्पर्श दाएं हाथ की पांचों उंगलियों से करना चाहिए। ‘शिरसे स्वाहा’ कहकर मस्तक का स्पर्श, ‘शिखायै वषट्’ कहकर शिखा-स्थान का स्पर्श, ‘कवचाय हुम’ कहकर दोनों हाथों से दोनों भुजाओं का स्पर्श तथा ‘नेत्रत्रयाय वौषट्’ कहकर दाएं हाथ से तीनों नेत्रों (तीसरा नेत्र मस्तक के मध्य में माना जाता है) का स्पर्श  करते हैं।  अंत में ‘अस्त्राय फट्’ कहकर बाएं हाथ पर दाएं हाथ का पंजा मारकर ‘फट्’ की ध्वनि  की जाती है यानी ताली बजाई जाती है।

अंगन्यास

इसमें ‘शिखायै’ कहकर शिखा का स्पर्श, ‘दक्षिणनेत्रे’ कहकर दाएं नेत्र का स्पर्श, ‘वामनेत्रे’ कहकर बाएं नेत्र का स्पर्श, ‘दक्षिणकर्णे’ कहकर दाएं कान का स्पर्श, ‘वामकर्णे’ कहकर बाएं कान का स्पर्श, ‘दक्षिण नासापुटे’ कहकर दाएं नथुने का स्पर्श और ‘वाम नासापुटे’ कहकर बाएं नथुने का स्पर्श किया जाता है। यह न्यास पद्मासन की मुद्रा में बैठकर अपना बायां हाथ बाएं घुटने पर रखकर दाएं हाथ द्वारा पूर्णतः एकाग्रचित होकर श्रद्धापूर्वक किया जाता है।

दिगन्यास

दिगन्यास का अर्थ है – दिशाओं को नमस्कार करना।  इसमें पूर्व दिशा से आरंभ करके क्रमशः आग्नेय कोण, दक्षिण, नैऋत्य कोण, पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर और ईशान कोण को नमस्कार करते हैं। तत्पश्चात आकाश और भूमि को नमस्कार किया  जाता है। जिस दिशा को नमस्कार करना होता है, आसन पर बैठे-बैठे उस दिशा की ओर मुख किया जाता है और हाथ जुड़े रहते हैं। इसमें एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर घूमने के लिए आसन से नहीं उठते हैं। पूर्व के लिए ‘प्राच्यै नमः’, आग्नेय के लिए ‘आग्नेयै नमः’, दक्षिण के लिए ‘दक्षिणायै नमः’, नैऋत्य के ‘नैऋत्यै नमः’, पश्चिम के लिए ‘पश्चिमायै नमः’, वायव्य के लिए ‘वायव्यै नमः’, उत्तर के लिए ‘उदीच्यै नमः’, ईशान के लिए ‘ईशान्यै नमः’, आकाश के लिए ‘आकाशायै नमः’ तथा भूमि के लिए ‘भूम्यै नमः’ का उच्चारण करते हैं।     -क्रमशः