धर्म के प्रतिनिधि

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

ऐसा घोषित किया गया था कि पृथ्वी के सभी धर्म संप्रदायों के प्रतिनिधिगण व्याख्याताओं के रूप में सभा में सम्मिलित हो सकेंगे। स्वामी जी के कुछ उत्साही  मद्रासी शिष्यों ने उन्हें हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में अमरीका भेजने का संकल्प किया। एक दिन सचमुच पांच सौ रुपए एकत्रित कर उन्होंने स्वामी जी के हाथ में समर्पित किए, अचानक स्वामी जी इस दुविधा में पड़ गए कि हिंदू धर्म के प्रतिनिध के रूप में विराट सभा में उपस्थित होने की योग्यता उनमें है भी या नहीं। अंत में काफी सोच-विचार के बाद उन्होंने वह धन वापस कर दिया और सस्नेह कहा, वत्सगण, मैं श्री जगतमाता के हाथ का यंत्रमात्र हूं। उनकी मर्जी होने पर वे खुद ही मुझे वहां भेज देंगी। इस धन को तुम दरिद्र नारायण की सेवा में लगाओ। मैं भी तो जरा देखना चाहता हूं कि मां की क्या इच्छा है। इतनी मुसीबत से जमा किए हुए पैसे दूसरे के कार्य में लगा देने का आदेश पाकर सभी शिष्य मायूस हो गए, मगर गुरु की आज्ञा का उल्लंघन भी नहीं किया जा सकता था। स्वामी जी ने सभी शिष्यों को तसल्ली देते हुए कहा, देखो मैं संन्यासी हूं। संकल्प के बिना कोई भी कार्य करना मेरे लिए उचित नहीं। अगर भगवान की इच्छा यही है, तो वो उपाय भी बताएगा। तुम सब लोगों को निराश होने की आवश्यकता नहीं है। तभी मन्मथ बाबू के पास हैदराबाद से उनके एक दोस्त स्टेट इंजीनियर बाबू  मधुसूदन चटर्जी का स्वामी जी को वहां भेजने के लिए एक पत्र आया। यह जानकर कि वहां सभी शिक्षित वर्ग के लोग स्वामी जी के दर्शनों के लिए उत्सुक हैं, मन्मथ बाबू व स्वामी जी की शिष्य मंडली ने उनकी सहमति पाकर मधुसूदन बाबू को सूचित कर दिया कि स्वामी जी 10 फरवरी को हैदराबाद आएंगे। 10 फरवरी को स्वामी जी हैदराबाद पहुंचे। वहां पहुंचकर उनका काफी स्वागत किया गया। 17 फरवरी स्वामी जी हैदराबाद की मित्र मंडली व भक्तगणों से विदा लेकर मद्रास लौट आए।  इसी बीच स्वामी जी ने एक सपना देखा कि श्री रामकृष्ण देव दिव्य देह धारण कर समुद्र किनारे विस्तीर्ण महासागर के ऊपर पैदल चले जा रहे हैं तथा उन्हें पीछे-पीछे आने का संकेत कर रहे हैं। इस सपने से मानों सारी दुविधा,संकोच व संदेह दूर हो गए। स्वामी जी अमरीका जाने के लिए तैयार हो गए। किंतु एकाएक खेतड़ी के महाराज के प्राइवेट सेक्रेटरी मुंशी जगमोहन लाल खेतड़ी से आ पहुंचे। उन्होंने स्वामी जी से कहा, स्वामी जी दो वर्ष पहले आप खेतड़ी  पधारे थे और चलते समय महाराज को आपने पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था। आपका आशीर्वाद सफल हुआ। राज्य के उत्तराधिकारी का जन्म हुआ है और आनंदोत्सव में आपको बुलाने के लिए महाराज ने मुझे आपकी सेवा में भेजा है। आप चलने की कृपा करें। स्वामी जी बोले, लेकिन मैंने अमरीका जाने का मन बना लिया है, जिसका कुछ भी प्रबंध अभी नहीं हो पाया है। स्वामी जी चाहे एक दिन के लिए खेतड़ी चलें, नहीं तो महाराज बहुत नाराज होंगे। अमरीका जाने की तैयारी के लिए आपको किसी तरह की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, महाराज खुद व्यवस्था कर देंगे। सिर्फ आप मेरे साथ चलें। मजबूर होकर स्वामी जी को खेतड़ी जाना पड़ा।