पहाड़ी राजाओं ने की थी अदीना बेग की सहायता

अदीना बेग ने जो पहाड़ी रियासतों का भी सूबेदार था, पहाड़ी राजाओं से सहायता मांगी। तकरीबन सभी पहाड़ी राजा उसकी सहायता को गए। इस सहायता में हिंदूर के राजा भूपचंद ने भी भाग लिया था। यह युद्ध दो मास तक होता रहा। कुछ पहाड़ी राजा युद्ध छोड़कर वापस चले गए परंतु भूपचंद युद्ध में  डटा रहा। अदीना बेग भी युद्ध से बहुत तंग आ चुका था…

गतांक से आगे …

एक पठान जमाल- ओलू-दीन ने भारी सेना लेकर अदीना बेग पर आक्रमण कर दिया। अदीना बेग ने जो पहाड़ी रियासतों का भी सूबेदार था, पहाड़ी राजाओं से सहायता मांगी। तकरीबन सभी पहाड़ी राजा उसकी सहायता को गए। इस सहायता में हिंदूर के राजा भूपचंद ने भी भाग लिया था। यह युद्ध दो मास तक होता रहा। कुछ पहाड़ी राजा युद्ध छोड़कर वापस चले गए परंतु भूपचंद युद्ध में  डटा रहा। अदीना बेग भी युद्ध से बहुत तंग आ चुका था। उसने भूपचंद से पूरी सहायता करने के लिए  कहा। एक दिन जब प्रातः से युद्ध चल रहा था तो भूपचंद का एक बाण जमाल-ओलू- दीन की आंख में लगा और वह घोड़े से गिरकर मर गया। उसकी सेना में भगदड़ मच गई और उनका सारा सामान अदीना बेग और भूपचंद के हाथ लगा गया। अदीना बेग ने प्रसन्न होकर राजा को खिल्लत प्रदान की थी। 1708 ई. मंे गुरू गोविंद सिंह की मृत्यु हो गई। इसके साथ ही बंदा बैरागी और उसके पश्चात 12 सिख मिसलों का उदय हुआ। बंदा बैरागी गुरु गोविंद सिंह का अनुयायी था। उसने गुरु के कहने पर पंजाब में विजय अभियान चलाया। इस अभियान में उसकी झड़पे मुगल सेनाओं से भी हुई। पराजित होने पर वह पहाड़ों  की ओर भागता रहा। इसी भाग दौड़ में वह हिंदूर से भी गुजरता रहा। बंदा बैरागी की मृत्यु के पश्चात कोई आधी शताब्दी से अधिक समय तक सिक्खों की मिसलों ने पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व जमाने तथा लूटमार से धन एकत्रित करने का बाजार गरम किया। इस होड़ में उन लोगों ने पहाड़ी राजाओं  पर भी कई बार  छापे मारे ‘कर’ या खिराज’ के रूप में  धन एकत्रित किया। इससे हिंदूर भी अछूता न रह सका। 1763 ई. में जस्सा सिंह अहलुवालिया होली मनाने के लिए आनंदपुर गया। वहां कुछ सिक्खों के वरगलाने पर उसने बिलासपुर और हिंदूर के निकट बनी एक  सैनिक चौकी स्थापित की और इन राजाओं से कर वसूल किए। भूपचंद के समय में उत्तर पश्चिम की ओर से नादिर शाह (1739 ई.) और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण आरंभ भी हुए। जिनके  अत्याचारों के भय से कई हिंदू लोग पहाड़ों की ओर भागे। भूपचंद के समय में हिंदूर की आय पलासी क्षेत्र से  50.000 रुपए सालाना और इससे दुगनी आय पहाड़ी क्षेत्रों से थी।

मान चंद (1756-1761):

मान चंद के समय हिंदूर दलबंदी में बंट गया था । ‘मतियाना’ के कनैतों ने राज पक्ष लिया और ‘थयाणु’ कनैत राजा के चाचा पदम चंद की ओर हो गए। उधर पदम चंद की राजा बनने की धुन लग गई थी। एक दिन जब राजा मान चंद पूजा में बैठा था तो पदम चंद ने उस पर आक्रमण करके उसे मार दिया। उसने रानी और  पुत्र अभीराज चंद को भी मार दिया।    – क्रमशः