ब्रह्मनिष्ठ याज्ञवल्क्य

 हमारे ऋषि-मुनि, भागः 15

महाराज जनक को ब्रह्मनिष्ठ गुरु से शिक्षा पाने के लिए पहचान करनी थी। परीक्षा का नाटक रचा। दूर-दूर से प्रसिद्ध ऋषि बुलाए। बछड़े सहित हजारों गौएं खड़ी कर दीं और उनके सींगों को स्वर्ण से मढ़वा दिया। घोषणा हुई। कोई भी ब्रह्मनिष्ठ गौओं को ले जा सकता है। संकोचवश सब बैठे रहे। याज्ञवल्क्य ने अपने एक शिष्य को कहा, तुम इन्हें ले जाओ। मगर इससे पूर्व उन्हें ब्रह्मवादिनी गार्गी तथा अन्य ऋषियों के साथ शास्त्रार्थ कर स्वयं को ब्रह्मनिष्ठ साबित करना पड़ा। इस प्रकार महाराज जनक की परीक्षा लेने की युक्ति तथा योग्य गुरु ढूंढने का यह तरीका सफल निकला। उन्हें ब्रह्मनिष्ठ गुरु पा लेना संभव हो गया…

याज्ञवल्क्य कर्मकांंड के खूब ज्ञाता थे। यज्ञकर्मों के आचार्य थे। वह ब्रह्मनिष्ठ थे। अनेक बड़े यज्ञ संपन्न करवा चुके थे। वह अपने मामा वैश्म्पायन के आश्रम में रहकर उनसे शिक्षा ले चुके थे। उन्होंने अपने मामश्री के आदेश पर उनके द्वारा यजुर्वेद की ऋचाओं का जो ज्ञान प्राप्त किया था, इसे अन्नरूप में उगलकर फेंक दिया। जिस समय वह ऐसा कर रहे थे, तब आश्रम में उपस्थित शिष्यांे ने तीतर बनकर अन्न को खा लिया। यही ज्ञान ‘कृष्ण यजुः’ के नाम से प्रसिद्ध शखा हुई। बाद में ‘कृष्ण यजुः’ तथा शुक्ल यजुः दो भेद सामने आए। कृष्ण यजु शाखा को पढ़ने वालों को तित्तर(तीतर) से तैत्तिरीय पुकारा जाने लगा।

सूर्य भगवान की उपासना

जब याज्ञवल्क्य से उनके मामा वैशम्पायन ने यजुर्वेद का ज्ञान उगलवा लिया, तो उन्होंने निश्चय किया मैं आज के बाद किसी मनुष्य को गुरु नहीं  बनाऊंगा। इसीके साथ उन्होंने सूर्यदेव की उपासना आरंभ कर दी। उन्हें प्रसन्न भी कर लिया। सूर्य भगवान ने अब अश्व का रूप धारण किया। याज्ञवल्क्य को उपदेश दिया। तब माध्यदिन वाजसनेय शाख बनी तथा प्रसिद्ध भी हुई। इसे ही शुक्ल यजुर्वेद कहा जाता है।

पत्नियां तथा पुत्र

इनकी दो पत्नियां थीं। नाम था मैत्रेयी तथा कात्यायनी। कात्यायनी भारद्वाज की बेटी थी। इनके तीन पुत्र हुए। नाम थे महामेघ, विजय तथा चंद्रकांत। मैत्रेयी ने तो महर्षि याज्ञवल्क्य से ब्रह्मविद्या प्राप्त की और परमपद भी प्राप्त कर लिया था।

ग्रंथों की रचना

याज्ञवल्क्य महर्षि ने अनेक ग्रंथों की रचना की। जिनमें प्रसिद्ध हैं याज्ञवल्क्य शिक्षा, याज्ञवल्क्य स्मृति, शतपथ ब्राह्मण, प्रतिज्ञा सूत्र, योगीयाज्ञवल्क्य। ब्रह्मवादिनी गार्गी के साथ इनका लंबा शास्त्रार्थ हुआ, वह पठनीय है। बृहदारण्यक उपनिषद में इनके शास्त्रार्था का वर्णन है।

एक रोचक घटना

महाराज जनक को ब्रह्मनिष्ठ गुरु से शिक्षा पाने के लिए पहचान करनी थी। परीक्षा का नाटक रचा। दूर-दूर से प्रसिद्ध ऋषि बुलाए। बछड़े सहित हजारों गौएं खड़ी कर दीं और उनके सींगों को स्वर्ण से मढ़वा दिया। घोषणा हुई। कोई भी ब्रह्मनिष्ठ गौओं को ले जा सकता है। संकोचवश सब बैठे रहे। याज्ञवल्क्य ने अपने एक शिष्य को कहा, तुम इन्हें ले जाओ। मगर इससे पूर्व उन्हें ब्रह्मवादिनी गार्गी तथा अन्य ऋषियों के साथ शास्त्रार्थ कर स्वयं को ब्रह्मनिष्ठ साबित करना पड़ा। इस प्रकार महाराज जनक की परीक्षा लेने की युक्ति तथा योग्य गुरु ढूंढने का यह तरीका सफल निकला। उन्हें ब्रह्मनिष्ठ गुरु पा लेना संभव हो गया।                           – सुदर्शन भाटिया