ब्रह्मर्षि विश्वामित्र

हमारे ऋषि-मुनि, भागः 14

 विश्वामित्र ने तपस्या की। वशिष्ठ जी उनसे प्रसन्न थे, ब्रह्माजी के कहने पर विश्वामित्र को केवल ब्रह्मर्षि ही नहीं कहा, बल्कि गले लगा लिया। उनको सप्तर्षियों में भी स्थान दिला दिया। वनों में जब राक्षसों ने विश्वामित्र के धर्मकार्यों, यज्ञ-अनुष्ठानों में विघ्न डालना शुरू किया, तो श्रीराम को ले आए। राजा जनक की पुत्री सीता से राम का विवाह संपन्न करवाया…

महर्षि विश्वामित्र ने अपने पुरुषार्थ से ब्रह्मत्व प्राप्त कर लिया। एक दिन वह भी आया,जब वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि की उपाधि दी, जिसके लिए विश्वामित्र को एक लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था। इन्होंने ही गायत्री मंत्र का सर्वप्रथम साक्षत्कार किया। विश्वामित्र क्षत्रिय थे। महाराज गाधि इनके पिता थे। यह प्रजापति कुश के वंशज थे। इसलिए कोशिक भी कहलाए। आरंभ में ये राजा थे। बड़ी सेना लेकर महर्षि वशिष्ठ के मेहमान बने। वहां अतिथिरूप में पहुंचे थे। महर्षि ने राजा विश्वामित्र तथा उनकी सेना की हर आवश्यकता पूरी कर दी। यह उनकी कामधेनु की पुत्री नंदिनी गाय के कारण संभव हुआ। भांति-भांति के पदार्थ पूरी सेना को मिल सके। इसे देखकर राजा विश्वामित्र का मन डोल उठा। इस गाय को पा लेने की प्रबल इच्छा बता दी। जब इंकार मिला तो,विश्वामित्र गाय को जबरदस्ती खोल कर साथ ले जाने लगे। वशिष्ठ जी से गाय ने ही अपनी रक्षा करने की स्वीकृति मांग ली। उन्होंने हां कह दी। लाखों सैनिक पैदा कर दिए गौ माता ने विश्वामित्र की एक बड़ी सेना का मुकाबला करने के लिए गौ माता ने लाखों सैनिक पैदा कर दिए। इसे देख उनकी सेना ही भाग खड़ी हुई। पराजित होना पड़ा राजर्षि विश्वामित्र को, मगर उन्होंने बदला लेने का मन बना लिया।

पुनः किया आक्रमण

पूरी तैयारी के साथ विश्वामित्र पुनः आए। जब अपने कानों से अपनी प्रशंसा सुनी, तो वह चकित हो गए। वशिष्ठ जी अपनी पत्नी के साथ विश्वामित्र की प्रशंसा किए जा रहे थे। इसे स्वयं विश्वामित्र ने छिपकर सुना था। वह वशिष्ठ जी के सम्मुख भूल स्वीकार कर क्षमा मांगते रहे। उन्होंने उनको क्षमा भी किया,साथ ही ब्रह्मर्षि कहकर उनका मान बढ़ाया।

तपस्या के बल पर

विश्वामित्र ने तपस्या की। वशिष्ठ जी उनसे प्रसन्न थे, ब्रह्माजी के कहने पर विश्वामित्र को केवल ब्रह्मर्षि ही नहीं कहा, बल्कि गले लगा लिया। उनको सप्तर्षियों में भी स्थान दिला दिया। वनों में जब राक्षसों ने विश्वामित्र के धर्मकार्यों,यज्ञ-अनुष्ठानों में विघ्न डालना शुरू किया, तो श्रीराम को ले आए। राजा जनक की पुत्री सीता से राम का विवाह संपन्न करवाया।

राजा त्रिशंकु की सहायता

महर्षि वशिष्ठ का राजा त्रिशंकु को श्राप था। विश्वामित्र ने अपनी नाराजगी को जताने के लिए राजा से यज्ञ करने को कह दिया। यज्ञ में वशिष्ठ जी के सौ पुत्र नहीं आए। तभी तो उन्होंने इनके वध की योजना बना ली और उन्हें मरवा डाला। इस पर भी ब्रह्मर्षि वशिष्ठ शांत बने रहे। यह उनकी महानता थी। इसे देखकर विश्वामित्र काफी लज्जित भी होते रहे। उन्हें असली संतोष तब मिला था, जब ब्रह्मर्षि की उपाधि मिल गई थी। 

                 – सुदर्शन भाटिया