भारतीय धर्म संस्कृति

श्रीराम शर्मा

भारतीय संस्कृति सबके लिए सभी भांति विकास का अवसर देती है। यह अति उदार संस्कृति है। विश्व में अन्य कोई धर्म संस्कृति में ऐसा प्रावधान नहीं है। उनमें एक ही इष्टदेव और एक ही तरह के नियम को मानने की परंपरा है। इसका उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। अगर करता है तो दंडनीय होगा। एक उद्यान में कई तरह के पौधे और फूल उगते हैं। इस भिन्नता से बागीचे की शोभा ही बढ़ती है। यही बात विचार उद्यान के संदर्भ में स्वीकार की जा सकती है। इसमें अनेक प्रयोग परीक्षणों के लिए गुंजाइश रहती है और सत्य को सीमाबद्ध कर देने से उत्पन्न अवरोध की हानि नहीं उठानी पड़ती। इस दृष्टिकोण के कारण नास्तिकवादी लोगों के लिए भी भारतीय संस्कृति के अंग बने रहने की छूट है, जबकि उनके लिए धर्मो के द्वार बंद हैं। भारतीय संस्कृति की दूसरी विशेषता है। कर्म फल की मान्यता। पुनर्जन्म के सिद्धांत में जीवन को अवांछनीय माना गया है और मरण की उपमा वस्त्र परिवर्तन से दी गई है। कर्म फल की मान्यता नैतिकता और सामाजिकता की रक्षा के लिए नितांत आवश्यक है। मनुष्य की चतुरता अद्भुत है। वह सामाजिक विरोध और राजदंड से बचने के अनेक हथकंडे अपनाकर कुकर्मरत रह सकता है। ऐसी दशा में किसी सर्वज्ञ सर्व समर्थ सत्ता की कर्म फल व्यवस्था का अंकुश ही उसे सदाचरण की मर्यादा में बांधे रख सकता है। परलोक की, स्वर्ग-नरक की, पुनर्जन्म की मान्यता यह समझाती है कि आज नहीं तो कल, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में कर्म का फल भोगना पड़ेगा। दुष्कर्म का लाभ उठाने वाले यह न सोचें कि उनकी चतुरता सदा काम देती रहेगी और वे पाप के आधार पर लाभान्वित होते रहेंगे। इसी प्रकार जिन्हें सत्कर्मों के सत्परिणाम नहीं मिल सके हैं, उन्हें भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है। अगले दिनों वे भी अदृश्य व्यवस्था के आधार पर मिल कर रहेंगे। संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण कर्म समयानुसार फल देते रहते हैं। इस मान्यता को अपनाने वाला न तो निर्भय होकर दुष्कर्मों पर उतारू हो सकता है और न सत्कर्मो की उपलब्धियों से निराश बन सकता है। अन्य धर्म जहां अमुक मत का अवलंबन अथवा अमुक प्रथा प्रक्रिया अपना लेने मात्र से ईश्वर की प्रसन्नता और अनुग्रह की बात कहते हैं, वहां भारतीय धर्म में कर्म फल की मान्यता को प्रधानता दी गई है और दुष्कर्मों का प्रायश्चित करके क्षति पूर्ति करने को कहा गया है। भारत समृद्ध संस्कृति का एक ऐसा देश है, जहां एक से ज्यादा धार्मिक संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं। इसे विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी कहा जाता है। जीने की कला हो या विज्ञान और राजनीति का क्षेत्र, भारतीय संस्कृति का सदैव विशेष स्थान रहा है। अन्य देशों की संस्कृतियां तो समय की धारा के साथ-साथ नष्ट होती रही हैं, किंतु भारत की संस्कृति आदि काल से ही अपने परंपरागत अस्तित्व के साथ अजर-अमर बनी हुई है। संस्कृति जीवन की विधि है।