महिलाएं कानून के प्रति सचेत हों

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

 

अभी हाल ही में हिमाचल में हुए राजदेई नामक 83 वर्षीया वृद्ध महिला के साथ अमानवीय व्यवहार ने  समाज को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया।  एक ऐसी महिला जिसका पति नहीं, बेटा नहीं और उसे अशक्त मान देव प्रकरण का पाखंड कर जो बर्बरता की गई वह न केवल महिला सशक्तिकरण के नाम पर जोरदार चांटा है वरना संपूर्ण विश्व में महिलाओं के साथ हो रहे उत्पीड़न की पराकाष्ठा है।

देव समाज के कुछ ठेकेदारों ने फौजी की वीर विधवा को डायन बताकर जूते की माला पहनाकर, मुंह काला करके, गांव में घुमाया गया तो सिर्फ  इसलिए क्योंकि वह असहाय थी, अकेली थी। पुलिस, आम जनता, पंचायत सब यह तमाशा देखते रहे और दूर ब्याही उसकी बेटी को जब इस प्रकरण का पता सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो से लगा तो वह फफक-फफक कर रोते हुए बोली कि उसकी मां का कोई बेटा नहीं, इसलिए आज उन पर अत्याचार हुआ, शायद उसकी चल-अचल संपत्ति हड़पने की मंशा से यह अमानवीय दुष्कर्म किया गया। बेटी के दिल का यह मर्म कि उसकी मां के कोई बेटा नहीं इस ओर इशारा करता है कि कन्या भू्रण हत्याओं जैसे जघन्य अपराध तभी पनप रहे हैं कि इसके पीछे बेटियों को एक सक्षम सहारा नहीं माना जाता।

कुछ भी हो आज जब कि टेक्नोलॉजी अपनी चरम सीमा पर है, हम चांद-सितारों, अंतरिक्ष पर विजय की बात करते हैं, न्यूकलीयर युद्ध, बायोलॉजिकल युद्ध की कगार पर बैठे हैं, सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की बात करते हैं, विश्व गुरु होने का दावा करते हैं, विश्व शक्ति बनने की प्रेरणा से ओत-प्रोत हैं, ऐसे में इस तरह के किस्सों से मानवता की बुनियाद हिलती तो दिखती ही है, साथ में मन खिन्न होकर इस विकास से नाक भौंह भी सिकोड़ लेता है। प्राचीन भारत से मध्यकालीन व आज वर्तमान भारत में महिलाओं की स्थिति का आकलन किया जाए तो उसकी दशा व दिशा में परिवर्तन होते रहे हैं। पुरातन भारत में जहां नारी को शक्तिपुंज व देवी का दर्जा दिया गया वहीं मध्यकालीन भारत में पुरुष सत्ता ने हावी होकर नारी को चार दीवारी तक सीमित कर दिया। इस काल में महिलाओं को सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक भेदभाव के साथ शारीरिक, मानसिक व यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा जो आज तक बरकरार है।

पुरातन काल में महिलाओं की स्थिति मेरी नजर में सुदृढ़ व गौरवशाली रही है। युद्ध कला, शास्त्रार्थ में पारंगत अनेक नारियों को आज भी पूजित किया जाता है। सीता, अनुसूया, वृंदा, सावित्री जैसी सती नारियों से इतिहास भरा पड़ा है। ये भले ही किसी न किसी कारण प्रताडि़त हुई हैं, लेकिन इनकी जीवन कथा से जुड़े गहरे प्रसंगों को पढ़ा-सुना जाए तो वह मार्मिक न होकर इनकी अंतर्शक्ति, इनके साहस, इनकी सूझबूझ व इनके अलौकिक होने का आभास करवाती हैं।

आज का दिन हम तीन मिराबैल बहनों पैट्रिया मर्सिडीज, मारिया अर्जेंटीना मिनेर्वा व एंटोनिया मारिया टेरेसा को नहीं भूला सकते जिन्होंने डोमोनिकल शासन के राजनीतिक कार्यकर्ता राफेल टुजलो की तानाशाही के खिलाफ  आवाज उठाई जिसके एवज उनकी कू्ररता से हत्या कर दी गई। उन्हीं की श्रद्धांजलि स्वरूप, पूरे विश्व में महिलाओं के मानवाधिकारों की रक्षा हेतु ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया जाता है। मगर यह दिवस मात्र औपचारिकता रह जाएगा अगर स्वयं महिला अपने अधिकारों व महिला सुरक्षा कानूनों से अवगत नहीं हुई। अपने कर्त्तव्यों को शालीनता से निभाते हुए अपने अधिकारों, जीवन मूल्यों व स्वाभिमान को भी अधिमान देना होगा।