युवा पीढ़ी रहे नशे से दूर

-अंकित ठाकुर    

संघर्ष को मानव जीवन का दूसरा नाम कहा जाता है। इसी संघर्ष से व्यक्ति कुंदन की तरह शुद्ध और पवित्र बन जाता है। जिन लोगों का हृदय कमजोर होता है या जिनका निश्चय सुदृढ़ नहीं होता है वे संघर्ष के आगे घुटने टेक देते हैं। वे अपनी सफलता से बचने के लिए नशे को सहारा बनाते हैं। कहने को क्या है, वे लोग तो कह देते हैं कि हम गम को भुलाने के लिए पीते हैं। इसी से हमारे मन को शांति मिलती है। नशा करने से दुखों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, लेकिन क्या सचमुच नशा करने से व्यक्ति दुखों से मुक्त हो जाता है। अगर ऐसा होता तो पूरे विश्व में कोई भी दुखी और चिंताग्रस्त नहीं होता। आजकल नशा सबसे ज्यादा बच्चों में देखने को मिल रहा है। सबसे पहले सरकार को नशे को छोड़ कर युवाओं की तरफ  एक नजर देनी चाहिए।  आजकल के युवाओं ने नशे को एक फैशन बना दिया है। आज 125 करोड़ के पार की इस जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवा वर्ग का है। नशा एक ऐसी समस्या है, जिससे नशा करने वाले के साथ-साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है, और अगर परिवार बर्बाद होगा तो समाज नहीं रहेगा, समाज नहीं रहेगा तो देश भी बिखरता चला जाएगा। युवाओं में नशा सिर्फ  सिगरेट व शराब तक सीमित नहीं रहा बल्कि वर्तमान समय में कोकीन, हेरोइन, गांजा, चरस, चिट्टा, भांग, नशीली दवाइयां आदि का प्रयोग हो रहा है। अगर नशे को अपने कल को बचाना है तो हम सभी को अभी इसी वक्त ‘न पीएंगे न पीने देगें’ जैसे कदम उठाना पड़ेगा व युवाओं में बहुत अधिक बढ़ती नशे की लत पर सरकार को अधिक से अधिक कदमों को उठाना पड़ेगा ताकि नशा अपना विशाल रूप न ले।