विष्णु पुराण

यह विज्ञान अत्यंत शुद्ध, मल रहित तथा शोकलोमादि सभी दोषों से शून्य केवल एक सत्स्वरूप, वासुदेव परमेश्वर है, उससे पृथक कुछ नहीं ।

सभभ्दाव एव भवतो मयोक्तो ज्ञानं तथा सत्यमसत्यमयत।

एत्ततु यत्संव्यवहारभूतं तत्रापि चोक्तं भुवनाश्रित ते।।

यज्ञः पशंर्वह्निरशेषऋत्दिक्सोमः सुराः स्वर्गमयश्च कामः।

इत्यादिकर्माश्रितमागदृष्टं भूरादिभोगाश्च फलानि तेषाम।।

यच्चंतददुवनगतं मया तबदोक्तं सवैत्र ब्रजति हि तत्र कर्मवश्यः।

ज्ञात्वैवध्रुवमचलं सदकरूपं तत्कुर्याद्विशतिहियेनवासुदेवकम।।

इस प्रकार तुम्हारे प्रति यह परमार्थ विषय मैंने कहा है एकमात्र ज्ञान ही सत्य है और उससे भिन्न जो कुछ सब असत्य समझो। जो केवल व्यवहार भूत है, उस भुवन विषयक वृत्तांत को तुमसे कह चुका हूं। यज्ञ,पशु, अग्नि, ऋत्विक, सोम देवगण और स्वर्गमय अभिलाषा आदि विषय भी बता दिया। पृथ्वी आदि लोकों के सब भोग इन कर्मों के ही आश्रित हैं। यह जो भुवनगत लोकों के विषय में मैंने कहा है, उन्हीं में यह सब प्राणी अपने कर्म के वशीभूत हुआ घूमता रहता है, यह जानकर वही करना उचित है जिनसे ध्रुव अचल और सदैव एक रूप वाले भगवान वासुदेव की प्राप्ति हो सके।

भगवन्जम्यगाख्यातं यत्पृष्टोऽपि मया किल।

भूसमुद्रादिसरितां संस्थान ग्रहसंस्थिति।।

विष्णवधारं यथा चैतत्त्रैलोक्य सभवस्थित म।

परमार्थस्तु ते प्रोक्तो यथा ज्ञान प्रधानतः।।

यत्वेत भगवानाह भरतस्य महीयतेः।

श्रोतूमिच्छामि चरित तन्माख्यातुमहंसि।।

भरतः स महीपालः शालग्रामेऽवसत्किल।

योगयक्तः समाधाय वासुदेवे सदा मनः।।

पुण्यदेशप्रभावेन ध्यायतश्च सदा हरिम।

कथं तु नाभवमुक्तिर्यभृत्य द्विजःपुनः।।

विप्रत्वे च कृतं तेन यभ्दयः सूमहात्मना।

भरतेन मुनिश्रेष्ठ तत्सर्व वक्तुमर्हसि।।

श्री मैत्रेय जी ने कहा, हे भगवान! पृथ्वी, समुद्र, नदी, ग्रह स्थिति आदि विषयक मेरे सब प्रश्नों को आपने कह दिया। यह त्रैलोक्य भगवान विष्णु पर किस प्रकार आश्रित है और परमार्थ रूप ज्ञान ही किसी प्रकार प्रधान है, यह सब भी आपने कह दिया। परंतु भगवान सुनने की मेरी इच्छा है, उसे कृपा पूर्वक कहिए। कहा जाता है कि वह राजा भरत निरंतर योग मग्न रहकर भगवान में ध्यान लगाए शालग्राम क्षेत्र में निवास करते रहते थे। पुण्य देश के वास और हरिचिंतित को भी वह मोक्ष को प्राप्त नहीं। उन्हें ब्राह्मण रूप में पुनः जन्म ग्रहण करना पड़ा। हे मुनिवर उन महात्मा भरत ने ब्राह्मण होकर क्या-क्या किया, सब कृपा पूर्वक बताएं।

शालाग्रामे महाभागो भगवन्नयस्त मानसः।

स उवास चिरं कालं मैत्रेय पृथ्वीपतिः।।

अहिंसादिष्वमेषेषु गुणिनां वरः।

अवाप परमां काष्ठामनश्चपि संयमे।।

यज्ञेज्ञाच्युत गोविंद माधवानंत केश्वः।

कृष्ण विष्णो हृषीकेश वासुदेव नमोऽस्तुते।।

श्री पराशरजती ने कहा, हे मैत्रेयीजी! उन महाभाग राजा भरत ने भगवान का ध्यान करते हुए चिरकाल शालाग्राम क्षेत्र में निवास किया। गुणियों के श्रेष्ठ उस भरत ने अहिंसादि गुणों के पालनपूर्वक मन को संयम रखकर परम श्रेष्ठता प्राप्त की। हे यज्ञेश! अच्युत गोविंद, माधव, अनंत, केश्व, कृष्ण, विष्णो, हृषीकेश, वासुदेव आपको नमस्कार है।