समझ आ गई बात

गतांक से आगे

वह चिडि़यां के पीछे दौड़ता हुआ पेड़ के पास पहुंचा। उसने चलते-चलते देखा अमित चिडि़या का एक अंडा हाथ पर उठाया हुआ था। उसने दूर से ही अमित को आवाज लगाकर चिडि़या का अंडा वापस घोंसले पर रखने की बात कही, लेकिन अमित ने उसकी बात नहीं मानी और अंडा जोर से जमीन पर दे पटका और बालो, यह लो मुझसे दूर भागने का मजा। अंडा टूट चुका था। चिडि़या और तरुण के चेहरे पर उदासी छा गई थी। आंख में आंसू लिए चिडि़या टूटे हुए अंडे के पास बैठ गई। तरुण अब तक पेड़ के पास पहुंच चुका था। वह अमित को इतना ही बोला, अमित यह तुमने सही नहीं किया। तुम्हें कोई हक नहीं है किसी की जान लेने का। ज्यादा मत बोलो। इससे पूछो, यह मेरे पास क्यों नहीं आती। अमित ने रौब से कहा। तुम्हारे इसी व्यवहार के कारण ही यह तुम्हारे पास नहीं आई। यदि तुम प्यार से इसे अपने पास बुलाते तो यह अवश्य ही तुम्हारे पास आती। मैं अपने किसी भी परिणाम के लिए ज्यादा समय तक इंतजार नहीं करता। यह मेरे बुलाने पर नहीं आई तो मुझे दूसरे तरीके अपनाने ही थे। अमित यह कहता हुआ फटाफट अपने घर की ओर बढ़ गया। तरुण अमित की इस हरकत से बहुत दुखी हो गया था। उसने अंडे के पास बैठी चिडि़या को अपने हाथों  में उठाया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए काफी देर तक उसे सहलाता रहा। वह उसके दुख को कम करने का प्रयास करता रहा। दूसरी सुबह स्कूल जाते हुए तरुण को अमित भी रास्ते में ही मिल गया, लेकिन आज वह चुपचाप, उदास-सा नजरें नीचीं किए हुए चल रहा था। अमित आज तरुण कासामना करने की जैसे हिम्मत नहीं जुटा पा  रहा था। उसे इस तरह अजीब हालत में देखकर तरुण ने कहा, क्या बात है अमित? उदास लगर रहे थे। तरुण मुझे माफ कर दो। मैंने कल चिडि़या का अंडा तोउ़कर बहुत ही नीच काम किया है। मैं उस वक्त गुस्से में तुम दोनों को मिले को नहीं समझ पाया दोस्त, लेकिन जैसे ही मैं घर पहुंचा तो मुझे तुम्हारे दुख का पूरा-पूरा एहसास हो गया। अमित ने उदासी भरे शब्दों में कहा।

घर पर क्या हुआ अमित?

मैं जब घर पहुंचा तो मैंने देखा कि मैंने मुर्गी के नीचे सेने के लिए जितने अंडे रखे थे उन्हें बिल्ली तोड़ गई और कुछ को खा गई। शायद मुझसे कुक्कुट घर का दरवाजा ठीक ढंग से बंद नहीं हो पाया था। बिल्ली ने मेरी मुर्गी को भी खाने की कोशिश की। परंतु शुक्र है कि वह बच गई। मेरी उस मुर्गी ने कल से एक दाना भी नहीं खाया। इस नुकसान से जितना दुख मुर्गी को हुआ उतना मुझे भी हुआ। मैंने इन अंडों से निकलने वाले बच्चों के बारे में न जाने क्या क्या सोचा था। मुर्गी के छोटे-छोटे बच्चों को देखने और उनके साथ खेलने के लिए न जाने कब से इंतजार कर रहा था। पर सब कुछ खत्म हो गया। शायद मुझे पिछले दिन की चिडि़या  के साथ ही उस घटिया हरकत का जवाब मिल चुका था। मैं पूरी रात ढंग से सो नहीं पाया। इस घटना ने मुझे अब तक की मेरी शैतानियों और सभी पक्षियों के साथ किए गए घटिया बर्ताव का एहसास मुझे करवा दिया है। मुझे माफ कर देना तरुण। मैं कसम खाकर कहता हूं कि आज के साथ के बाद किसी भी पक्षी या जानवर को कभी तंग नहीं करूंगा। अमित की बातों में पछतावा था। तरुण को अमित की बात से बहुत खुशी मिल रही थी। तरुण ने चलते-चलते अमित के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रख दिया था। दोनों के कदम स्कूल की ओर बढ़ते चले जा रहे थे।

पवन चौहान, सुंदरनगर