हमारे ऋषि-मुनि, भागः 12 ऋर्षि नर-नारायण

नर तथा नारायण ने अपने लिए बदरीवन को चुना तथा वहीं घोर  तप भी किया। धर्म, ज्ञान व भक्ति का भी विस्तार किया। अनेक ऋषि-मुनि उनके शिष्य बने, ज्ञान पाया। आज भी बदरीवन में कुछ भक्तों को नर तथा नारायण के दर्शन हो जाते हैं…

नर तथा नारायण दोनों ऋषि माता मूर्ति के गर्भ से पैदा हुए। इनके पिता का नाम धर्म था। भगवान विष्णु ने ही इस दंपत्ति के घर दो पुत्रों के रूप में जन्म लिया था। नर तथा नारायण ने अपने लिए बदरीवन को चुना तथा वहीं घोर तप भी किया। धर्म, ज्ञान व भक्ति का भी विस्तार किया। अनेक ऋषि-मुनि उनके शिष्य बने, ज्ञान पाया। आज भी बदरीवन में कुछ भक्तों को नर तथा नारायण के दर्शन हो जाते हैं। यहीं पर नारद, व्यास तथा उद्धव भी विचरण करते रहते हैं, ऐसी मान्यताएं हैं। जब देवराज को हुआ खतरा नर तथा नारायण दोनोें ऋषि खूब तप किया करते। इसकी सूचना देवराज इंद्र के पास पहुंची। वह फिर चिंतित हो उठे। कहीं ये घोर निरंतर तप से उनकी गद्दी ही न छीन लें। अतः उन्होंने सदा की तरह हथकंडों का सहारा लिया। अप्सराएं भेजीं, कामदेव को तैनात किया, खूब वर्षा, खूब शीत, खूब बर्फ, खूब गर्मी, वसंत भी इस कार्य पर लगा दिए। मगर नर तथा नारायण की तपस्या भंग नहीं हुई, बल्कि उन्होंने इन सबको अभय दान देते हुए कहा, आप सबका इस वन में स्वागत है। आप चाहो तो हमेशा के लिए यहीं निवास करो, आपका आदर बना रहेगा और पूरा सम्मान भी मिलेगा। उनकी आंखें झुक गई। कुचेष्टा भी लज्जित हुई। दोनों ऋषियों (नर तथा नारायण) का स्तुतिगान कर विदा ली। उन्होंने पाया कि नर तथ नारायण में क्रोध का जरा भी अंश न था। वे विजयी होकर भी शांत, धीर, गंभीर बने रहे।

योगमाया की लीला

यह लीला भी अद्भुत थी। देवराज इंद्र के पास भेजी कई शक्तियां परास्त होने के बाद नर-नारायण की स्तुति करते नहीं थक रही थीं। भगवान योगमाया से अनेक सुंदरियों को भेजा। वे सब नर तथा नारायण की सेवा में लगी थीं। इसे देखकर  इंद्र देव की शक्तियां बेहद चकित हो गईं। उन लावाण्य से भरपूर स्त्रियों के शरीर से सुगंध आ रही थी। सौंदर्य बेमिसाल था। इसे देखकर वे सब शक्तियां मुग्ध सी हो गई। उन्हें भौंचक्का सा देख नारायण ने कहा, तुम लोग चाहो तो इन अति सुंदर स्त्रियों में से किसी एक को अपने साथ स्वर्गधाम ले जा सकते हो। उन्होंने जिस अप्सरा को अपने साथ लिया, वह उर्वशी थी। उसे देवताओं की सभा में जाकर खड़ा किया। नर तथा नारायण की खूब सेवा की, गुणगान किया। देवराज इस सुंदरी को देखकर व नर-नारायण की अच्छाइयों को सुनकर अपने कुकृत्य पर पश्चाताप करने लगे, लज्जित होते रहे। उन्हें पता चल गया कि अनेक सुंदरियों के मध्य रहकर भी नर-नारायण ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करने में सक्षम हैं।

काम या रति उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। काम पर विजय पाकर भी उन्हें न घमंड है, न ही क्रोध। वे दोनों पूर्ण शांत हैं अदभुत। वैष्णव संप्रदाय के सब कुछ माने जाने वाले नर तथा नारायण ने अनेक ऋषियों-मुनियों में ज्ञान बांटा, उनका वर्णन भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पुराणों व ग्रंथों  में उपलब्ध है।                   – सुदर्शन भाटिया