आखिर कब रुकेगी हैवानियत?

प्रवीण शर्मा

पालमपुर

कितनी गुडि़यां इस देश के अंधे कानून की आड़ में हैवानियत का शिकार होंगी। भारतीय कानून में अब कानून की देवी की आंखों से पट्टी खोलने का वक्त आ गया। आज हैवानियत का शिकार हो रही बेटियां क्रांतिकारियों व देवी-देवताओं के इस देश में सुरक्षित नहीं हैं। लक्ष्मी पूजन, दुर्गा पूजन, सरस्वती वंदना करने वाले इस देश में जब एक बेटी घर से बाहर सुरक्षित नहीं है तो फिर इन देवियों की पूजा करके समाज को क्या फायदा है। ऐसे समाज मे प्रचलित कानून की निंदा होनी चाहिए जहां प्रियंका जैसी होनहार बेटियों की निर्दयता से पहले हैवानियत का शिकार बनाया जाता है और फिर जिंदा जला दिया जाता है और फिर सालों साल कोर्ट में केस चलते हैं परंतु हैवान हवालात में मुफ्त की रोटियां तोड़ते हैं और बेटियों के माता-पिता कोर्ट कचहरियों के चक्कर लगाते-लगाते न्याय की आस में थक जाते हैं, उनके आंसू भी थम जाते हैं परंतु न्याय नहीं मिलता। सोचना होगा और सोचना भी चाहिए कि जब बेटियां सुरक्षित नहीं हैं तो फिर यह राग क्यों अलापा जाता है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और देश बचाओ। आज देश में इसके लिए ऐसे कानून की आवश्यकता है जिसमें इन हैवानों को तुरंत गोली मारने का आदेश कानून को देना चाहिए। सख्त कानून की आज जरूरत हैं। कुछ देशों में इस तरह के कानून हैं जहां ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा दी जाती है तो ऐसा कानून भारत देश में क्यों नही बन सकता क्योंकि बार-बार देश की धरती शर्मसार हो रही है। क्यों बार- बार बेटियों को अहसास करवाया जा रहा है कि वे इस देश में सुरक्षित नहीं है। कुछ लोग कहते है कि यह नए युग के परिधानों का कसूर है तो वे जरा यह भी बताएं कि हिमाचल प्रदेश में जिस स्कूली छात्रा ने जो कि अपनी स्कूल यूनिफार्म में छुट्टी के बाद अपने घर वापिस जा रही थी तो बताया जाए कि उसे क्यों दरिंदगी का शिकार बना कर फिर मार कर फेंक दिया गया? उस बेटी के पहने कपड़ो में क्या कमी थी। केंडल मार्च करने से क्या होगा बल्कि न्याय तो तब होगा जब अपराधियों को मृत्यु दंड मिलेगा। परंतु इसके लिए मांग तो करनी पड़ेगी। क्यों न समाजसेवी संस्थाएं इसके लिए आगे आएं और तब तक मांग करें जब तक एक सशक्त कानून नहीं बन जाता।