आत्म पुराण

गतांक से आगे…

इस तरह तेज,जल,वायु पृथ्वी को उत्पन्न करके वह कारण उन भूतोें के साथ तादात्म्य हो गया। हे श्वेतकेतु जैसे सृष्टि के आदिकाल में तेज का कारण होता है और जल पृथ्वी का कारण बनता है, वैसे ही प्रक्रिया अभी तक दिखाई पड़ रही है। अब भी जब खूब तपन होती है, तो उससे जल बरसता है और उस जल से अन्न की उत्पत्ति होती है। इस तरह तेज,जल,पृथ्वी सब पदार्थों की उत्पत्ति के कारण जान पड़ते हैं। इसलिए शास्त्र वेत्ता विद्वानों ने सब देहधारी जीवों के भी तीन ही कारण बताए हैं। सर्वप्रथम जरायुज प्रथम देहधारी जीवों का बीज है। यह जरायुज जठराग्नि के तेज से ही उत्पन्न होता है। इससे उसे तेजस माना गया है। इसके पश्चात दो प्रकार के स्वदेज उदभिज्ज रूप होते हैं और दूसरे यूकादि रूप स्वदज अंडज रूप कहे गए हैं। इससे एक ही स्वेदज को जलीय उदभिज्ज रूप में तथा पार्थिव अंडज रूप में माना जा सकता है। ये तीन ही सब देहधारियों के बीज रूप हैं।

शंका– हे भगवन! ब्रह्म सूत्र के तृतीय अध्याय में भगवान व्यास ने स्वेदज का उदभिज्ज में ही अंतर्भाव किया है। पर यहां आपने उस स्वेदज का उदभिज्ज और अंडज दोनों में अंतर्भाव बताया। इससे ब्रह्म सूत्र के कथन का विरोध माना जाएगा।

समाधान- हे शिष्य! व्यास भगवान का अभिप्राय यह है कि जैसे वृक्षादि भूमि को भेदकर ऊपर चढ़ते हैं उसी प्रकार मशकादि रूप उदभिज्ज और यूकादि रूप अंडज ये दो प्रकार के स्वेदज भी अपने उपादन कारण जलों का ऊर्ध्व भेदन करके ही उत्पन्न होते हैं। इसलिए मशकादि उदभिज्ज और यूकादि अंडजों के लिए भी उदभिज्ज शब्द प्रयुक्त किया जा सकता है। इस तरह के अर्थ को प्रकट करने के लिए ही भगवान व्यास ने उदभिज्ज में स्वदेज का अंतर्भाव बतलाया गया है। पर अंडज में स्वदेज का अंतर्भाव नहीं हो सकता ऐसा भगवान व्यास ने कहा है। भगवान व्यास का कथन इतना ही है कि पक्षी,सूर्य आदि यूकादिक जीव अंडज हैं और वृक्ष,मशक आदि उदभिज्ज हैं तथा इन दोनों से भिन्न तीसरे जरायुज हैं। हे श्वेतकेतु जैसे इस लोक के शरीरों में जरायुज, उदभिज्ज अंडज ये तीन भेद आध्यात्मिक कारणों से बताए गए हैं, वैसे ही समस्त जगत के कारणों में तेज,जल, पृथ्वी के तीन भेद माने गए हैं।

शंका-हे भगवन! इस प्रकार तेज आदि का कारण जान लेने से अधिकारी पुरुष को किस फल की प्राप्ति होती है। ्रसमाधान- हे श्वेतकेतु! जैसे तेज,जल,पृथ्वी ये तीन कारण अपने-अपने कार्य में लगे रहते हैं,उसी प्रकार इन तीनों भूतों से वह परमात्मा देव भी अपने सत्ता रूप में तादात्म्य बना रहता है। ऐसा सर्व जगत का कारण रूप परमात्म देव ही हम सब अधिकारी जनों के जानने योग्य है। जैसे घड़ा, कुल्हड़ आदि कार्य रूप पदार्थों में मिट्टी ही कारण रूप में सम्मिलित रहती है,वैसे ही तेज,जल,पृथ्वी इन तीनों पदार्थों में वह परमात्म देव आरंभ से ही कारण रूप से सम्मिलित हो चुका है। जैसे सृष्टि के आदि काल में वह परमात्मा देव यह विचार करके कि मैं एक से बहुत हो जाऊं अनेक रूप में प्रकट हो गया,वैसे ही ये तेज और जल दोनों ही उसी प्रकार का विचार करके बहुत तरह के रूपों में प्रकट हुए हैं।