आदेश न मानने पर हाई कोर्ट नाराज

कार्यपालिका के विवेचना करने कोे बताया अवमानना का दोषी

शिमला – कार्यपालिका द्वारा अदालती आदेशों की जांच परख करने पर हाई कोर्ट ने प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश चंद्रभूषण बरोवालिया की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार के उस दोषी अधिकारी के खिलाफ हमें अवमानना का मामला दर्ज करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है, जिसने अदालती निर्णय को परखने की कोशिश की है। क्योंकि वह अधिकारी अब सेवानिवृत्त हो चुका है, इसलिए उसे माफ किया जाता है। मामले के अनुसार प्रदेश सरकार ने ट्रिब्यूनल के एक निर्णय को हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी। इसके तहत प्रतिवादी पीसी शर्मा की याचिका को ट्रिब्यूनल ने स्वीकार किया था और प्रतिवादी की सर्विस रिकार्ड में जन्मतिथि ठीक करने के आदेश दिए गए थे। अदालत ने पाया कि प्रतिवादी पीसी शर्मा ने हाई कोर्ट के समक्ष भी इसी तरह की याचिका दायर की थी। इसमें भी आदेश दिए गए थे कि पीसी शर्मा के प्रतिवेदन पर निर्णय लिया जाए, लेकिन सरकार के एक अधिकारी ने प्रतिवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया कि सर्विस रिकार्ड में जन्मतिथि सिर्फ पांच वर्ष के भीतर ही ठीक की जा सकती है। इसके बाद कोर्ट ने सरकार की याचिका को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि सरकार के अधिकारी को पीसी शर्मा के प्रतिवेदन पर निर्णय लेने के आदेश दिए गए थे, जबकि राज्य सरकार के उस अधिकारी ने प्रतिवेदन को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया कि प्रतिवेदन करने के लिए काफी देरी हो चुकी है। हालांकि हाई कोर्ट ने पहले ही यह निर्णय दिया था कि सर्विस रिकार्ड में जन्मतिथि ठीक करने के लिए पांच साल का समय तो उचित है, परंतु यह पांच साल उस समय से गिने जाएंगे, जब प्रार्थी को इस बारे में पता चले। इसलिए देरी से प्रतिवेदन किए जाने के आधार पर उसे खारिज नहीं किया जा सकता।