धन लक्ष्मी स्तोत्र

-गतांक से आगे…

समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।

शरच्चंद्रमुखे नीले नील नीरज लोचने।। 12।।

चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।

मत्ते भगवती मातः कलकंठरवामृते।। 13।।

हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिंतापहारिके।

रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने।। 14।।

क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।

रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये।। 15।।

प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।

मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके।। 16।।

कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।

वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वंदिते।। 17।।

धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।

ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे।। 18।।

स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।

श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे।। 19।।

पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।

श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः।। 20।।

सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्।

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।। 21।।

भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धन. धान्यादिसम्पदः।

इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम्।।         -समाप्त