धर्मराज मंदिर

हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला के जनजातीय भरमौर स्थित चौरासी मंदिर समूह में संसार के इकलौते धर्मराज महाराज या मौत के देवता का मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना के बाबत किसी को भी सही जानकारी नहीं है। बस इतना जरूर है कि चंबा रियासत के राजा मेरू वर्मन ने छठी शताब्दी में इस मंदिर की सीढि़यों का जीर्णोद्धार किया था। इसके अलावा इस मंदिर की स्थापना को लेकर अभी तक किसी को भी जानकारी नहीं है। मान्यता है कि धर्मराज महाराज के इस मंदिर में मरने के बाद हर किसी को जाना ही पड़ता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक। इस मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है, तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि सदियों पूर्व चौरासी मंदिर समूह का यह मंदिर झाडि़यों से घिरा था और दिन के समय भी यहां कोई व्यक्ति आने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है और यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दर्शाए गए हैं। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां पर अढ़ाई पौढ़ी भी है। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर पिंड दान किए जाते हैं। साथ ही परिसर में वैतरणी नदी भी है, जहां पर गौ दान किया जाता है। इसके अलावा धर्मराज मंदिर के भीतर अढ़ाई सौ साल से अखंड धूना भी लगातार जल रहा है। मंदिर के बाहर ही हाथ जोड़ कर चले जाते हैं लोग – चंबा जिले में भरमौर नामक स्थान में स्थित इस मंदिर के बारे में कुछ बड़ी अनोखी मान्यताएं प्रचलित हैं। मंदिर के पास पहुंच कर भी बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाते हैं। मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़कर चले जाते हैं। संसार में यह इकलौता मंदिर है, जो धर्मराज (यमराज) को समर्पित है।

खाली कमरे में रहते हैं चित्रगुप्त- इस मंदिर में एक खाली कमरा है, जिसे चित्रगुप्त का कमरा माना जाता है। चित्रगुप्त यमराज के सचिव हैं जो जीवात्मा के कर्मों का लेखाजोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी की मृत्यु होती है तब यमराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। यहां पर चित्रगुप्त व्यक्ति के कर्मों का हिसाब करते हैं।