नार्वे के टनल मॉडल अपनाएगा हिमाचल

भुंतर – हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे पहाड़ी राज्यों को नार्वे का टनल मॉडल साल के 12 महीने यातायात सुविधा प्रदान करेगा। दुनिया के चुनिंदा देशों में अपनाया जाने वाला यह टनल मॉडल अब हिमालयी क्षेत्रों में बनने वाली सुरंगों के निर्माण के लिए भारत सरकार भी अपनाएगी। लिहाजा, बर्फबारी और अन्य किसी भी प्रकार की मौसमी परिस्थितियों के दौरान भी यातायात प्रभावित नहीं होगा। मनाली-लेह मार्ग में बनने वाली सुरंग नए मॉडल के तहत पहला प्रोजेक्ट होगा। यह टनल मॉडल के तहत इन दिनों हिमाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश को जोड़ने वाले मार्ग का भू-गर्भीय सर्वेक्षण किया जा रहा है, जिसकी प्रक्रिया बुधवार को भी जारी रही।  एनएचआईडीसीएल और नार्वे के नार्वेजियन जीयो-टेक्नीकल इंस्टीच्यूट के बीच एमओयू साइन हुआ है। वर्तमान में आस्ट्रिया की टनल तकनीक का प्रयोग देश भर में हो रहा है, लेकिन नई पहल के तहत एनजीआई द्वारा प्रयोग होने वाली एयरबोर्न इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक सुविधा का प्रयोग एनएचआईडीसीएल द्वारा टनलों के सर्वेक्षण में करने को सहमति बनी है। एमओयू के तहत एजीआई को एयरबोर्न इलैक्ट्रो-मैग्नेटिक सुविधा देने वाली एमरॉल्ड जीयो-मॉडलिंग कंपनी चार सुरंगों का सर्वेक्षण पूरा करेगी। इन टनलों का निर्माण समुद्रतल से 5500 मीटर से अधिक उंचाई वाले इलाकों में होगा, जो माउंट एवरेस्ट के बेस कैंप की ऊंचाई से करीब 100 मीटर उंचा होगा। एनएचआईडीसीएल के अनुसार दुनिया की कुछ सबसे खतरनाक सड़कें हिमालय क्षेत्र में पाई जा जाती हैं, जो हर साल सर्दियों में बंद हो जाती हैं और यहां आवाजाही जारी रखने के लिए हेलिकॉप्टर का उपयोग किया जाता है। इन्ही सड़कों पर साल भर यातायात सुचारू रखने के लिए नई पहल की गई है। भुंतर एयरपोर्ट के निदेशक नीरज कुमार श्रीवास्तव के अनुसार एयरपोर्ट के अधिकारी भी इस सर्वेक्षण में अहम भूमिका निभा रहे हैं और यह प्रक्रिया करीब 10 दिनों तक चलेगी।