पदार्थ व चेतना का संयोजन

श्रीश्री रवि शंकर

जीवन केवल पदार्थ ही नहीं, बल्कि इससे कहीं अधिक है। मानवीय जीवन पदार्थ व चेतना दोनों का संयोजन है। यदि मानव केवल पदार्थ होता, तो आराम की आवश्यकता ही नहीं थी। क्योंकि पदार्थ को आराम, बेचैनी, सुंदरता, बदसूरती, खुशी व दुख का एहसास नहीं होता। ऐसा तो केवल उन्हें ही हो सकता है जिनमें चेतना विद्यमान है। परंतु जीवन केवल चेतना ही नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा होता, तो हमें पानी, भोजन व आराम की आवश्यकता ही महसूस न होती। चेतना अनुभव करती है व स्वयं को मूल्यों द्वारा अभिव्यक्त भी करती है। मूल्य वे भावनाएं हैं, जिन्हें न तो शब्दों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है और न ही बुद्धि द्वारा समझा जा सकता है। आध्यात्मिक पथ का उद्देश्य ऐसा मूल्य आधारित जीवन जीना है जो हमारी चेतना में विद्यमान हैं। इसलिए जीवन को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से समझना व पूर्णतया जीवन को जीना अति आवश्यक है। अब सवाल यह उठता है कि वे मूल्य कौन से हैं। शांति, प्रेम, आनंद, सुंदरता, ज्ञान और पदार्थ व चेतना को समझने की क्षमता ऐसे मूल्य हैं, जो जीवन को आनंदमयी बनाते हैं। इस धरा पर इनसान का कोई भी कार्य करने के पीछे उद्देश्य केवल खुशी व आराम ही होते हैं। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि सुविधा केवल भौतिक प्रगति अर्थात पदार्थ के द्वारा ही संभव है। पर वास्तव में सुविधा तो आत्मा की विशेषता है। हां, कुछ हद तक यह पदार्थ पर भी निर्भर करता है पर अधिकतर यह मनोभाव व समझ पर निर्भर करता है। आप सुनते हैं, समझते हैं और अपनाते हैं। पर कौन समझ रहा है और कौन अपना रहा है। यह आपके शरीर में विद्यमान चेतना अर्थात आत्मा ही है ,जो कि ज्ञान का अनुभव कर रही है, वह इसे अपना रही है। यह जानकारी आपको देखने, आवाज, सूंघने, स्वाद व स्पर्श से नहीं मिल रही, बल्कि यह तो आपको अंतर्बोध से ही प्राप्त होती है। आप यह भी कह सकते हैं कि चेतना के हर स्तर पर जानकारी विद्यमान है। चेतना है पर उसे सीमितता के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। आप चेतना को माप नहीं सकते। यह तो असीमित है। चेतना ही शांति है अर्थात आप स्वयं शांति हैं, आप स्वयं सत्य हैं, आप स्वयं ही ऊर्जा हैं। चेतना को जानना ही ज्ञान को समझना है। यह चेतना ही प्रेम का असीमित स्रोत है और आप स्वयं प्रेम ही हैं। इस बात को समझना और इसे अपने जीवन में जीना ही आध्यात्मिक जीवन है। जीवन की ऊंचाइयों को आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है। इस ज्ञान के अभाव में जीवन उदासी, निर्भरता, अज्ञानता, तनाव व दुख से भरा महसूस होता है। आध्यात्मिक ज्ञान का दृष्टिकोण ही जीवन में उत्तरदायित्व, अपनापन व संपूर्ण मानव जाति के लिए दया की भावना से भरता है। सच्चे अर्थों में आध्यात्मिक ज्ञान का भाव ही जात-पात, धर्म व देश की छोटी सीमाओं को दूर कर संपूर्ण मानव जाति के साथ एक अपनेपन का रिश्ता कायम करता है। विभिन्न देशों के बीच होने वाली लड़ाइयों को आध्यात्मिक ज्ञान का भाव व ज्ञान होने पर रोका व दूर किया जा सकता है। आध्यात्मिक जीवन जिदंगी से दूर भागना बिलकुल नहीं है। इसका अर्थ उत्तरदायित्व लेना है।