बाल मनोविज्ञान पर खरा उतरता उपन्यास

बाल साहित्य

वर्ष 2019 में डा. गंगाराम राजी द्वारा रचित उनका पहला बाल उपन्यास ‘चिडि़या आ दाना खा’ बाल मनोविज्ञान पर खरा उतरता है। डा. गंगा राम राजी प्रौढ़ साहित्य में अपनी कलम चलाते हैं, परंतु 75 वर्षीय राजी किसी छोटे, प्यारे बच्चे से कम नहीं हैं। उनके प्रौढ़ साहित्य में भी हमें बाल मनोविज्ञान की झलक मिलती है। ‘चिडि़या आ दाना खा’ बाल उपन्यास के माध्यम से अपने बाल मनोविज्ञान को कागज पर उतारा है। इस उपन्यास का आना बाल साहित्य सृजन के पक्ष में एक शुभ संकेत है। 80 पृष्ठों में समाहित इस उपन्यास का फौंट साइज पढ़ने में कोई परेशानी पैदा नहीं करता। 10 भागों में बंटे इस उपन्यास का हर भाग जहां हमें कहानी के अलग-अलग दृश्यों में लेकर जाता है, वहीं ये सारे भाग एक-दूसरे के साथ बराबर जुड़ते हुए पूरी कहानी को अंत तक सकुशल लेकर पहुंचते हैं। उपन्यास की पूरी कहानी बच्चों के इर्द-गिर्द, उनकी अठखेलियों, शरारतों, मासूमियत व खुले माहौल में जीने के साथ-साथ हर तरह के मानसिक तनाव से मुक्ति की बात करता है। उपन्यास के मुख्य पात्र दीपक, माया उर्फ  चुलबुल और परिवार में माता यशोद्धा, पिता राजकुमार तथा इनके दादा और दादी हैं। बहुत सारी बचपन की शरारतों, अठखेलियों से बुनी हुई घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमता उपन्यास अंत में बच्चों को उम्र में थोड़ा बड़ा बताकर किडनैप किए हुए बच्चों को इन बच्चों के माध्यम से छुड़ाकर एक साहसिक घटना के साथ समाप्त होता है। उपन्यास बड़ों को बच्चों के लिए समय देने की मांग करता हुआ कई रोचक घटनाओं को अंजाम देता है। उपन्यास में बच्चों के दादा-दादी जहां वर्तमान के साथ तालमेल बिठाते हुए इन बच्चों के साथ दोस्ताना माहौल रखते हैं, वहीं वे उनकी हर परेशानी को हल करने का प्रयास करते हैं।        -पवन चौहान