महान चंद की राजकार्य में रुचि नहीं थी

महान चंद आलसी राजा था और उसे राज्य के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। इससे लाभ उठाकर कांगड़ा के राजा ने सन 1795 ई. में सतलुज के दाहिने किनारे वाले क्षेेत्र पर अधिकार कर लिया। इसे देखकर राजा राम सरन सिंह कहलूर का साथ छोड़कर संसार चंद के साथ हो लिया और उसने राज्य के साथ लगते कहलूर के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया…

गतांक से आगे …

राम सरन सिंह (1756-1761)

गजे सिंह के उपरांत उसका पुत्र राम सरन सिंह गद्दी पर बैठा, जिसने लंबे समय तक शासन किया तथा 86 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। जब राम सरन सिंह गद्दी पर बैठा, उस समय कांगड़ा पर महाराजा संसार चंद (1775-1823 ई.) और कहलूर-बिलासपुर पर महान चंद (1778-1824 ई) का राजा था। महान चंद आलसी राजा था और उसे राज्य के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। इससे लाभ उठाकर कांगड़ा के राजा ने सन् 1795 ई. में सतलुज के दाहिने किनारे वाले क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इसे देखकर राजा राम सरन सिंह कहलूर का साथ छोड़कर संसार चंद के साथ हो लिया और उसने राज्य के साथ लगते कहलूर के क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। यह देखकर महान चंद ने आनंदपुर के सरदार गुरदीत सिंह और देसा सिंह को सहायता के लिए बुलाया। परंतु वे राम सरन सिंह के हाथों पराजित हो गए और मारे गए। इसके पश्चात राम सरन सिंह ने कहलूर-बिलासपुर पर आक्रमण किया और बिलासपुर नगर को जला दिया। उसने फतेहपुर, बहादुरपुर और रत्नपुर के किलो पर भी अधिकार कर लिया।

राम सरन सिंह ने महान चंद की कमजोरी से और बारह ठकुराइयों के आपसी झगड़ों से लाभ उठाकर उन्हें कहलूर के आधिपत्य से मुक्त करके अपने अधीन कर लिया। इसके पश्चात उसने पूर्व की ओर बढ़ने का प्रयास किया और यमुना  के किनारे अजमेर गढ़ तक के क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया। सपाटू में उसने अपने अधिकारी धर्मा नेगी को बैठा दिया। इसके बाद राम सरन सिंह ने सिरमौर की आपसी-राजनीति में दखल देना शुरू किया और वहां के कुछ लोगों  को राजा कर्म प्रकाश के विरुद्ध विद्रोह के लिए भड़काने लगा। वे लोग कर्म प्रकाश को अल्पबुद्धि वाला और दुर्बल समझते थे। वह इस स्थिति से निराश हो गया और समझने लगा कि वह बाहरी सहायता मांगी। अमर सिंह थापा ने भक्ति थापा के साथ 700 सैनिकों की टुकड़ी भेजी, पंरतु उन्हें हिंदूर के सैनिकों ने जामटा के पास घेर लिया और आत्मसमर्पण करने पर बाध्य कर दिया। अंत में गोरखा सैनिक चले गए।

राजा राम सरन सिंह के कांगड़ा के महाराजा संसार चंद के साथ बहुत अच्छे और मैत्रीपूर्ण संबंध थे। कांगड़ा और हिंदूर से अपना क्षेत्र वापस छुड़ाने के उद्देश्य के कहलूर के राजा महान चंद ने सन् 1804 मं गोरखों के सेनापति अमर सिंह थापा को अपनी सहायता के लिए बुलाया। गोरखा सेना ने अक्तूबर 1804 ई. को यमुना  को पार करके हिंदूर सेना को ‘अजमेर गढ़’  के किले में पराजित किया और इसके पश्चात रामगढ़ और नालागढ़ को घेरा। गोरखों ने हिंदूर के सैनिकों को घूस देकर हथियार डलवा दिए। इसके साथ ही गोरखों ने कांगड़ा पर आक्रमण कर दिया। राम सरन सिंह ने गोरखों के विरुद्ध कांगड़ा के महाराजा संसार चंद की सहायता की।