लोक से जुड़ी कहानियां हैं ‘एक तथ्य अटका हुआ’

‘एक तथ्य अटका हुआ’, यह कहानी संग्रह डा. पीयूष गुलेरी की 30 कहानियों का संकलन है। स्वर्गीय डाक्टर पीयूष गुलेरी ने हालांकि यह पुस्तक बहुत पहले लिखी, मगर इसका नवीन संस्करण हाल ही में उनके पारिवारिक सदस्यों ने विमोचित किया है। कथा संग्रह के आमुख को कुछ इस तरह से बुना गया है कि सत्तर-पचहत्तर से पहले पैदा हुए लोग उस खालिस गंध में खो जाते हैं, जो गोशाला और घर के माहौल में हमेशा घुलती रहती थी। डा. पीयूष की शैली से ही पता चलता है कि उन्होेंने कितनी शिद्दत से जीए होंगे, वे बचपन के दिन। ‘ये भेडि़ए’ कहानी, घर-घर की कहानी है। पात्र जीवन के दिल में उपवन खिल उठना, बाराती बनने के चाव की पराकाष्ठा है। दीना की दीनता और उसका अहंकार भी सामाजिक जीवन के वे हिस्से हैं, जिन्हें लेखक ने जीवंत कर दिया है। ‘स्मृतियों के भंवर’ में भी लेखक एक परिवार को सामाजिक इकाई मानते हुए पूरे समाज की ही नब्ज टटोलता है। गोपाल की स्मृतियों में पिता के खत का इंतजार। भाइयों में पिता के उपचार हेतु छुट्टी का जुगाड़। यही तो है घर-घर की कहानी। ‘बड़े फेर वाला लहंगा’ के जरिए लेखक ने विरह, बिछोह और बचपन की अठखेलियों की बहुरंगी तस्वीर पेश की है, जिसमें सिपाही का किरदार भी जीवंत हो उठता है। ऐसी ही अन्य कहानियां भी हैं। डा. पीयूष गुलेरी की प्रत्येक कहानी में ऐसे दर्जनों बिंब-प्रतिबिंब हैं, जो कड़ी के रूप में एक संपूर्ण तस्वीर पेश करते हैं। हर कथानक की शुरुआत और अंत एक-दूसरे में ऐसे गूंथे गए हैं कि इसमें सुराख कर पाना मुश्किल है। हां, युद्ध के वृत्तांतों में कहीं-कहीं कल्पना भी हावी लगती है। कहानियों में लोकरंग का पुट अपनापन पैदा करता है। चौबरों, छोरुओं, बोबो जैसे अलंकृत देशज शब्दों का प्रयोग कोट में चांदी के बटन जैसे सुहाता है।