हिमाचल में प्राचीन काल से ही लोक कला विद्यमान है

इस बात से हमें अनेक प्रमाण प्राप्त होते हैं कि हिमाचल प्रदेश जो उस समय विभिन्न रियासतों में बंटा हुआ था, इन में प्राचीन काल से ही लोक कला किसी न किसी रूप में विद्यमान थी। लोककला के इस प्रचलित रूप को राजाओं की धार्मिक प्रवृत्ति अथवा उनके कला प्रेम के कारण जब राजाश्रय प्राप्त हुआ तो इसमें निखार आता गया और यह सुसंस्कृत होती हुई पहाड़ी कलम या कांगड़ा की कलम के नाम से प्रसिद्ध हुई…

गतांक से आगे …

लेकिन ऐसा सोचना बिलकुल निराधार है। वास्तव में हिमाचल प्रदेश में इसका जन्म लोक कला के रूप में हुआ। इस बात से हमें अनेक प्रमाण प्राप्त होते हैं कि हिमाचल प्रदेश जो उस समय विभिन्न रियासतों में बंटा हुआ था, इन में प्राचीन काल से ही लोक कला किसी न किसी रूप में विद्यमान थी। लोककला के इस प्रचलित रूप को राजाओं की धार्मिक प्रवृत्ति अथवा उनके कला प्रेम के कारण जब राजाश्रय प्राप्त हुआ तो इसमें निखार आता गया और यह सुसंस्कृत होती हुई पहाड़ी कलम या कांगड़ा की कलम के नाम से प्रसिद्ध हुई। पहाड़ी चित्रकला 150 मौल लंबे और 100 मील चौड़े जम्मू से टिहरी और पठानकोट से कुल्लू तक लगभग 1500 वर्गमील क्षेत्र में फैली हुई थी। ये पहाड़ी क्षेत्र मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा आर्थिक स्थिति में पिछड़े हुए थे। बाहरी शक्तियों और हमलावरों से इन राज्यों को इनकी कठिन भौगोलिक स्थिति के कारण नहीं जूझना पड़ा इसलिए यहां शांति बनी रही। ये राज्य सीमा विवाद आदि के लिए कभी कभार लड़ते रहते थे फिर भी शांति के समर्थक थे। मुगल दरबार से जहांगीर के समय में कलाकारों की अधिकता के कारण इधर-उधर आश्रय ढूंढते कलाकार जिस शांतमय वातावरण की आकांक्षा रखते थे वह उन्हें इन रियासतों में मिला और वे इन पहाड़ी रियासतों में आकर बस गए। हिमाचल प्रदेश व अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में कोई भी रियासत इतनी प्रसिद्ध नहीं थी जिसमें सभी कलाकार आश्रय ले पाते इसलिए ये कलाकार विभिन्न रियासतों में बसे। हिमाचल प्रदेश  प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से अपना अदभुत स्थान रखता है। जिसका  कला निर्माण में विशेष योगदान रहता है। यहां के इस मनोहारी शांतमय वातावरण की झलक हमें हिमाचल की चित्रकृतियों में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। हिमाचल प्रदेश जो उस समय कई रियासतों में बटां हुआ था, इन रियासतों में मुगल कलाकारों के आने से वहां प्रचलित लोकशैली मुगल प्रभाव से विकसित होकर एक नया रूप धारण करने लगी। यहां की कई पहाड़ी रियासतों में कला केंद्र स्थापित हो गए। सभी पहाड़ी रियासतों में उस समय छोटे-बड़े कई कला केंद्र थे। वर्तमान हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में प्रमुख कला केंद्र थे उनके नाम इस प्रकार से हैं। गुलेर, कांगड़ा, नूरपुर, टीरा, सुजानपुर, नादौन, चंबा, मंडी, सुकेत, कुल्लू, बिलासपुर, अर्की, नाहन, कोटला, जुग्गा तथा जुब्बल।