खेल के धुंधलके

भारत का नाम ‘खेलो इंडिया खेलो’ के मार्फत जिन ऊंचाइयों पर लिखा जाएगा, उसके कुछ दस्तावेज साई एक्सीलेंस सेंटर धर्मशाला में भी लिखे जा रहे हैं। खो-खो, कबड्डी के बाद अब एथलेटिक्स का सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनने के कारण यहां राष्ट्रीय तमगे और तिरंगे की खातिर जोश और जुनून का संगम देखा जाएगा। राष्ट्रीय स्तर के 76 खिलाडि़यों की पौध के बीच यह प्रश्न भी उठता है कि राज्य सरकार खेल नगरी के अस्तित्व में अपने स्तर पर क्या कर रही है। विडंबना यह है कि पिछले दो सालों में राज्य के खेल विभाग ने नेशनल स्पोर्ट्स होस्टल की फाइल को ही ताले में बंद करके रखा है। यह भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे हिमाचल का वर्तमान दौर खुर्द-बुर्द कर रहा है। आश्चर्य यह कि जमीन संबंधित औपचारिकताएं पूरी होने के बावजूद प्रदेश सरकार भारतीय खेल प्राधिकरण से उस परियोजना पर करार नहीं कर पाई, जिसके लिए आरंभिक तौर पर ही 26 करोड़ की धनराशि उपलब्ध हो चुकी है। देश में खेल के उच्च मानकों को हासिल करने के लिए धर्मशाला में खेल प्राधिकरण की उपलब्धियों में निरंतर इजाफा ही नहीं हुआ, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में यहां से अभ्यास करके कई भारतीय खिलाड़ी यह साबित कर चुके हैं कि अगर सुविधाएं माकूल हों, तो एक साथ कई खेलों का कारवां धर्मशाला से ही निकलेगा। ऐसे में नेशनल स्पोर्ट्स होस्टल के प्रति सरकार का उदासीन रवैया कई प्रश्न उठाता है। पिछले दो सालों में ऐसी परियोजना के प्रति यह विभागीय लापरवाही है या खेल मंत्री की प्राथमिकताओं में प्रदेश की योजनाएं अलग तरह से चिन्हित हैं। खेल नीति का ढिंढोरा यूं तो पीटा जा रहा है, जबकि अधोसंरचना की काबिलीयत में प्रदेश को एकमात्र केंद्र का ही सहारा है। देश के खिलाडि़यों का प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र बन चुका धर्मशाला का साई केंद्र अपने तौर पर कबड्डी, खो-खो के बाद एथलेटिक्स में राष्ट्रीय संकल्पों में खेलो इंडिया खेलो जैसे अभियान को प्रतिष्ठित कर रहा है। इसी के साथ राष्ट्रीय ध्वज धारक के रूप में भारतीय खिलाडि़यों को अंतरराष्ट्रीय भूमिका के लिए तैयारी के सोपान यहां परिलक्षित हो रहे हैं। ऐसे में यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि राष्ट्रीय स्तर के होस्टल के लिए उपलब्ध 26 करोड़ इसलिए वापस हो जाएं, क्योेंकि प्रदेश का खेल महकमा पूर्व सरकार के दौर में चयनित भूखंड को खेल प्राधिकरण को नहीं सौंप रहा है। इतना ही नहीं, यहां घोषित फुटबाल अकादमी तथा खेलों से संबंधित अन्य विकास योजनाएं भी एक तरह से ठप रही हैं। ऐसे में जिस खेल नीति की परिभाषा में सरकार कुछ बड़ा करने की सोच रही है, उसका व्यावहारिक पक्ष भी देखना होगा। वर्षों से खेल प्राधिकरण की बात होती रही है, लेकिन प्रदेश में खेल मैदानों का विकास तक नहीं हो रहा। प्रदेश में उपलब्ध आबोहवा इस काबिल है कि थोड़े से प्रयास भर से कई राष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों को विश्व प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा सकता है। शिमला का शिलारू हाकी के लिए राष्ट्रीय संकल्प की निशानी है, तो भारतीय खेल प्राधिकरण की निगाहें अब धर्मशाला को खेलों के मक्का की तरह देख रही हैं। ऐसे में हिमाचल के खेल मंत्री अगर यहां नया कुछ नहीं करना चाहते हैं, तो कम से कम राष्ट्रीय प्रतिष्ठानों तथा स्वीकृत परियोजनाओं को इस तरह बर्बाद होते न देखें।