जीवन में परिवर्तन

बाबा हरदेव

इस जगत में दो ही तरह के परिवर्तन हैं। एक परिवर्तन है जो स्थान में घटित होता है और दूसरा वह परिवर्तन है, जो काल में घटित होता है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाता है, तो दो प्रकार के परिवर्तन घटित होते हैं। जब वह व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचता है, तो उस व्यक्ति ने एक तो स्थान परिवर्तित किया, दूसरे जब एक स्थान से दूसरे स्थान तक गया, तो कुछ समय भी व्यतीत हुआ। दो परिवर्तन हुए एक स्थान परिवर्तित हुआ और इसके साथ समय भी परिवर्तित हुआ। इस अवस्था में स्थान और समय दोनों परिवर्तन के आधार बनें। अब परमात्मा में स्थान कोई परिवर्तन नहीं लाता और न ही समय कोई परिवर्तन लाता है। इसका एक ही कारण है कि हम सभी समय और स्थान में जीते हैं। जबकि स्थान और समय दोनों परमात्मा में जीते हैं। परमात्मा एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर नहीं जाता,क्योंकि सभी स्थान इसीमें हैं। इस प्रकार परमात्मा के लिए कोई उपाय नहीं है कि परमात्मा इस वर्ष से दूसरे वर्ष में प्रवेश करे,क्योंकि सभी वर्ष परमात्मा के भीतर हैं।  इसलिए परमात्मा को हम कहते हैं कलातीत,क्षेत्रातीत। विद्वानों ने परमात्मा की परिभाषा की है कि परमात्मा का अर्थ है, है-पन। अस्तित्व जो कहते हैं और जो हो सकता है वह परमात्मा में ही हो सकता है। मानो जिसका सब ओर विस्तार है, जो सब ओर व्याप्त है, अर्कीण है। संपूर्ण अवतार वाणी का भी कथन है। भरपूर खलावां अंदर देखो पसरी बैठे जो दातार, वक्त के हाकम ने है रखया नां ऐसे दा ही निरंकार। अतः स्थान और समय परमात्मा में कोई परिवर्तन नहीं लाते। आम मनुष्य के लिए भूत, वर्तमान और भविष्य यह समय के तीन हिस्से हैं,परंतु परमात्मा और परमात्मा के जानकारों के लिए सदा वर्तमान ही है जो कि शाश्वत है। अतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण से वर्तमान समय का हिस्सा नहीं है। भूत और भविष्य ही समय का हिस्सा है। इसी प्रकार मनुष्य के लिए यहां और वहां ऐसे दो अंतर हैं, जबकि परमात्मा के लिए और इसके भक्तों  के लिए सब कुछ  यहां है। आम व्यक्ति के लिए गुजरा हुआ कल और आने वाला कल ऐसे समय के फासले हैं, परंतु परमात्मा के लिए सभी कुछ यहां और अभी है। मजे की बात यह है कि परमात्मा की ऐसी स्थिति कोई अभी से नहीं है,सदा से ही ऐसी चली आ रही है। अब अंत में कहना पड़ेगा कि परमात्मा के बारे में अभी और यहीं के अतिरिक्त कोई शब्द नहीं हो सकते, समय और स्थान की दृष्टि से,क्योंकि परमात्मा से तत्त्व ज्ञानियों का अर्थ है पूर्ण अस्तित्व और अध्यात्म में अस्तित्व को कहते हैं तत। इसमें मैं भी समा जाता है, तू भी समा जाता है। इसमें मैं जन्मता भी है और फिर लीन भी हो जाता है। परमात्मा में देश, काल, वस्तु आदि कारणों के होने पर भी कोई परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि परमात्मा का स्वभाव सूक्ष्म और सत्ता मात्र है, इसलिए यह परब्रह्म है।