तंत्र का इतिहास बहुत प्राचीन है

योग तथा तंत्र दोनों, अध्यात्मिक चक्रों की शक्ति को विकसित करने की विभिन्न पद्धतियों के बारे में बताते हैं। हठयोग और ध्यान उनमें से एक है। विज्ञान भैरव तंत्र, जो कि 112 ध्यान की वैज्ञानिक पद्धति है, भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताई है। इसमें सामान्य जीवन की विभिन अवस्थाओं में ध्यान करने की विशेष पद्धति वर्णित है। तंत्र-मंत्र का लिखित प्रमाण लगभग मध्य कालीन इतिहास से मिलना शुरू हो जाता है। इसीलिए लगभग सभी धर्मों में जीवन की समस्याओं का हल तंत्र-मंत्र के माध्यम से बताया गया है। अति गोपनीय तांत्रिक पद्धति में योनी तंत्र का विशेष महत्त्व है…

इस बार हम तंत्र के इतिहास पर चर्चा करेंगे। भारत में तंत्र का इतिहास सदियों पुराना है। ऐसा माना जाता है कि सर्वप्रथम भगवान शिव ने देवी पार्वती को विभिन अवसरों पर तंत्र का ज्ञान दिया। योग में तंत्र का विशेष महत्त्व है।

योग तथा तंत्र दोनों, अध्यात्मिक चक्रों की शक्ति को विकसित करने की विभिन्न पद्धतियों के बारे में बताते हैं।

हठयोग और ध्यान उनमें से एक है। विज्ञान भैरव तंत्र, जो कि 112 ध्यान की वैज्ञानिक पद्धति है, भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताई है। इसमें सामान्य जीवन की विभिन अवस्थाओं में ध्यान करने की विशेष पद्धति वर्णित है।

तंत्र-मंत्र का लिखित प्रमाण लगभग मध्य कालीन इतिहास से मिलना शुरू हो जाता है।

इसीलिए लगभग सभी धर्मों में जीवन की समस्याओं का हल तंत्र-मंत्र के माध्यम से बताया गया है। अति गोपनीय तांत्रिक पद्धति में योनी तंत्र का विशेष महत्त्व है।

इस ग्रंथ में दस महाविद्या (देवी की दस तांत्रिक विधियों से उपासना) वर्णित है।

तंत्र-मंत्र की सभी तांत्रिक क्रियाएं, जिनमें सम्मोहन, वशीकरण, उच्चाटन मुख्य हैं, मंत्र महार्णव तथा मंत्र महोदधि नामक ग्रंथों में वर्णित हैं।

तंत्र अहंकार को समाप्त कर द्वैत के भाव को समाप्त करता है, जिससे मनुष्य सरल हो जाता है और चेतना के स्तर पर विकसित होता है।

सरल होने पर ईश्वर से संबंध सहजता से बन जाता है।

तंत्र का उपयोग ईश प्राप्ति की लिए सद्भावना के साथ करना चाहिए।

हमने यह लेख सामान्य ज्ञानवर्धन हेतु अध्यात्म के जिज्ञासुओं के लिए प्रकाशित किया है।

हमारा अनुग्रह है कि प्रायोगिक कार्य गुरु की देख-रख में ही करें।

बिना गुरु के प्रायोगिक अध्ययन वर्जित है तथा अवांछित परिणाम हो सकते हैं।

तंत्र का जुड़ाव प्रायः मंत्र, योग तथा साधना के साथ देखने को मिलता है।

तंत्र गोपनीय है, इसलिए गोपनीयता बनाए रखने के लिए प्रायः तंत्र ग्रंथों में प्रतीकात्मकता का प्रयोग किया गया है।

कुछ पश्चिमी देशों में तंत्र को शारीरिक आनंद के साथ जोड़ा जा रहा है, जो कि सही नहीं है।