धर्म व दर्शन

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

भाषण करते समय उन्होंने बीच में रुककर अपने श्रोताओं से पूछा इस सभा में कितने लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म व शास्त्र के साथ भली प्रकार से परिचित हैं? वे लोग हाथ उठाएं। इस पर सात हजार लोगों में से तीन चार लोगों ने हाथ उठाए। इस पर स्वामी जी व्यंग्य के साथ बोले और फिर आप हमारे हिंदू धर्म की आलोचना करते हैं। इस बात पर सभी लोग चुप थे और हिंदू धर्म की निंदा करने वालों ने शर्मिंदगी से सिर झुका लिया। अंत में स्वामी जी ने कहा, जो लोग इस धर्म सभा में शामिल हैं और प्रवचन सुन रहे हैं,अगर वे दिल में ऐसी भावना रखेंगे कि कोई विशेष धर्म किसी की प्राप्ति का साधन है और अन्य धर्म बेकार हैं,वे सभी लोग वाकई में दया के लायक हैं। अपने गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस के सर्वधर्म समन्वय का संदेश देते हुए उन्होंने कहा,प्रत्येक जाति प्रत्येक धर्म दूसरी जातियों और धर्मों  के साथ आदान-प्रदान करेगा, कुछ लेगा और कुछ देगा,लेकिन प्रत्येक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। हर मनुष्य अपनी-अपनी अंतर्निहित शक्ति के अनुसार आगे बढ़ेगा। आज से हमें धर्म ध्वजाओं पर यह लिख देना चाहिए कि युद्ध नहीं सहयोग,ध्वज नहीं एकात्मता, भेद नहीं सामंजस्य। पूरे अमरीका में स्वामी विवेकानंद की प्रसिद्धि की दुंदुभि बजने लगी। अनेक धर्म जिज्ञासु अपने परिचित होने,धर्म तत्त्व की चर्चा करने तथा शंकाएं दूर करने के लिए स्वामी जी के पास आने लगे। शहर के अखबार स्वामी जी की चर्चाओं से भरने लगे। अमरीका के अग्रणी दैनिक न्यूयार्क हेरल्ड ने तो यहां तक लिख दिया कि शिकागो धर्म सभा  में स्वामी विवेकानंद ही सर्वश्रेष्ठ हैं। उनका भाषण सुनकर ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म मार्ग में इस प्रकार के सुमंत राष्ट्र में यहां से धर्म प्रचारकों को भेजना निरी मूर्खता है। एक दूसरे पत्र प्रेस आफ अमरीका ने लिखा है हिंदू धर्म व दर्शन के आचार्य स्वामी विवेकानंद सभी सभाओं में अग्रगण हैं। उनकी बोली में जादू है। जबकि ईसाई धर्म के अनेक धर्माचार्य वहां उपस्थित थे,लेकिन उन सभी के भाषण वक्तव्य स्वामी जी के व्याख्यानों के सामने फीके पड़ गए,धर्म तत्त्वों की स्वामी जी ने ऐसी प्रस्थापना की कि वे श्रोता मंडली के दिल पर गंभीरता से अंकित हो गए थे। धर्मसभा खत्म हो जाने के महीनों बाद तक समाचार पत्रों में स्वामी विवेकानंद चर्चा का विषय बने रहे। उनके चरित्र, प्रतिभा और धर्मतत्व के ज्ञान का आख्यान करते हुए लोग थकते नहीं थे। उनके व्याख्यानों को लेकर अनेक विद्धानों की शास्त्रीय आलोचनाएं प्रकाशित होने लगीं,अनेक शिक्षित वर्ग के लोग उनसे मिलने के लिए जिज्ञासु होने लगे और उनसे  मिलने उनके पास आने लगे। स्वामी विवेकानंद के दर्शनों के लिए आने वाले लोगों की तो गिनती नहीं थीं। जगह-जगह उनके फोटो लग गए थे और लोग बड़ी श्रद्धा से इस भारतीय संन्यासी के विषय में बातें करते थे। धर्मसभा का कार्यक्रम समाप्त होने के साथ ही स्वामी जी की लोकप्रियता, प्रसिद्धि और भाषण कला की जादूगरी से प्रभावित  होकर उन्हें एक व्याख्यान देने के लिए निमंत्रित किया।