पीओके में लहराएगा ‘तिरंगा’

‘सेना दिवस’ से पहले मीडिया के साथ अपने प्रथम संवाद में सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख किया और कहा कि भारतीय सेना देश के लोगों की है और लोगों के लिए ही है। सेना संविधान के न्याय, स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व और बुनियादी मूल्यों के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहेगी। सेना प्रमुख द्वारा संविधान की सार-रूप व्याख्या अभूतपूर्व और अप्रत्याशित है। हालांकि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर सेना के जनरल बयान देते रहे हैं, हालांकि उनमें कुछ भिन्नता भी होती है, लेकिन भाव यही रहता है कि पीओके भारत का हिस्सा है और हमेशा रहेगा। जनरल नरवणे ने यहां तक कहा कि सेना में जवान हो या अफसर हो, हम सभी संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। यह जनरल नरवणे का बेहद महत्त्वपूर्ण बयान है, क्योंकि मौजूदा दौर की घटनाओं और मुद्दों के संदर्भ में संविधान कुछ ज्यादा ही फोकस में है। अदालत के प्रांगण से लेकर विश्वविद्यालयों और कालेजों के परिसरों तक में संविधान की प्रस्तावना के पाठ किए जा रहे हैं। सेना प्रमुख ने संविधान में दिए गए सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लेख किया और दोहराया कि अपने देश के लोगों के लिए दायित्व निभाने में  सेना कभी कोई कोताही नहीं बरतेगी। बहरहाल सेना प्रमुख ने संविधान के प्रति इतना गहरा और गंभीर सरोकार जताया है, तो यह स्पष्ट भी किया है कि सेना गैर-राजनीतिक है, तटस्थ है, सिर्फ राष्ट्रीय है, लिहाजा उनका यह बयान भी गौरतलब है कि यदि संसद आदेश करेगी कि पीओके हमारा इलाका होना चाहिए, तो बेशक सेना पाकिस्तान के खिलाफ  कार्रवाई करेगी। जनरल नरवणे ने उल्लेख किया कि संसद पहले ही प्रस्ताव पारित कर चुकी है कि पीओके भारत का ही अभिन्न, अटूट हिस्सा है। चूंकि सेना प्रमुख ने संवाद संविधान की महत्ता और गरिमा से ही शुरू किया था, लिहाजा संसद का हवाला देकर उन्होंने यह भी स्थापित कर दिया कि संसद ही सर्वोपरि है। और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उनके पूर्ववर्ती सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत पीओके के संदर्भ में बयान देते थे कि यदि सरकार फैसला करेगी और हमें आदेश देगी, तो सेना कार्रवाई करने से नहीं चूकेगी। दरअसल संसद और सरकार परस्पर पूरक ही हैं, लिहाजा कोई नया भ्रम या विवाद पैदा करना हमारा मंतव्य नहीं है। जनरल रावत आज देश के प्रथम सीडीएस (चीफ  ऑफ  डिफेंस स्टाफ) हैं। गौरतलब मुद्दा पीओके का है कि क्या अब उस भू-भाग में हमारा ‘तिरंगा’ कभी लहराया जा सकेगा? पीओके का पुराना इतिहास यह देश जानता है कि किन परिस्थितियों में वहां पाकिस्तान का कब्जा हुआ। उस इतिहास को दोहराने से कुछ हासिल नहीं होगा, लेकिन आज पीओके को लेकर जितना सरोकार सरकार का दिख रहा है, वह बेशक अभूतपूर्व है। हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कह चुके हैं कि अब अगली बात पीओके पर ही होगी। विदेश मंत्री एस.जयशंकर का भी महत्त्वपूर्ण बयान आ चुका है। गृहमंत्री अमित शाह संसद में बहस के दौरान स्पष्ट कर चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर का मतलब पूरा कश्मीर है, जिसमें पीओके भी शामिल है। उसके लिए तो जान भी दे देंगे। भारत के इस बदले मूड का पाकिस्तान को पूरा एहसास है। वहां के वजीर-ए-आजम वहां की संसद तक में बयान दे चुके हैं कि मोदी सरकार पीओके में कुछ बड़ा आपरेशन करने की रणनीति पर विचार कर रही है। वह हमला पहले से भी बड़ा और तीखा हो सकता है। शायद इसीलिए पाकिस्तान ने बीते दिनों पीओके का नामकरण ही बदल दिया-जम्मू कश्मीर एडमिनिस्टे्रटिव सर्विसेज। पाकिस्तान के दो मंसूबे हैं। एक तो पीओके को नए नाम के साथ पाकिस्तान का पांचवां राज्य घोषित करना और दूसरे, खैबर पख्तूनख्वा राज्य के साथ इसका विलय करना। पीओेके 13,300 वर्ग किलोमीटर में फैला क्षेत्र है और  45 लाख से ज्यादा आबादी है। पाकिस्तान ने रणनीति के तहत और चीन की चमचागीरी करने के लिए गिलगित, बाल्टीस्तान का एक हिस्सा 1963 में उसे दे दिया था, लिहाजा हमारी सेना को पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले दोनों मोर्चों पर लड़ना होगा। पीओके पर ऑपरेशन का मतलब होगा-पाकिस्तान के साथ जंग। इसके अलावा सेना की रणनीति और क्या हो सकती है, उसे हम नहीं जानते। बहरहाल पीओके को वापस लेना और वहां के हरेक स्थान और भवन पर ‘तिरंगा’ फहराना वाकई एक बड़ा पेचीदा, लेकिन पवित्र सपना है। देखते हैं कि यह कब साकार होता है।