महर्षि मार्कंडेय तपोस्थली

हिमाचल के बिलासपुर जिले में महर्षि मार्कंडेय की तपोस्थली मार्कंड में स्नान किए बिना चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि भगवान शिव के यहां प्रकट होने पर झरना फूट पड़ा था। तभी से इसे मार्कंडेय तीर्थ के नाम से जाना जाता है। बैसाखी को यहां बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आकर ब्रह्म मुहूर्त से  दिन भर स्नान करते हैं। इस झरने में स्नान के बाद ही चार धाम की यात्रा को पूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार मृकंडु ऋषि की घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उन्हें पुत्र रतन का वरदान दिया था। वरदान के साथ ही उन्होंने पुत्र के अल्पायु होने का भी जिक्र किया था। इससे पिता मृकंडु परेशान रहने लगे। माना जाता है कि बालक मार्कंडेय कुशाग्र बुद्धि होने के साथ-साथ पितृभक्त भी थे। उन्होंने अपने पिता के मन को परख कर उनकी चिंता का कारण जान लिया। इसके बाद बालक मार्कंडेय ने चिंता से मुक्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या की। जब उनकी आयु 12 वर्ष होने में केवल 3 दिन ही बचे थे, तो उन्होंने रेत का शिवलिंग बना कर उसकी तपस्या में लीन हो गए। यमदूत उनके प्राण हरण करने के लिए आए, लेकिन जब वह बाल तपस्वी की ओर बढ़ने लगे, तो रेत के शिवलिंग में से आग की लपटें निकल पड़ी। उन्होंने उस बालक को पकड़ने का बहुत प्रयास किया, लेकिन पकड़ न पाए। हारकर यमदूत वहां से चले गए और उन्होंने यह सारा हाल यमराज को सुनाया। उसके बाद जब स्वयं यमराज वहां आए, तो बालक मार्कंडेय जी ने शिवलिंग को बांहों में पकड़ लिया। शिवलिंग में से शिव प्रकट हुए तथा उन्होंने यमराज को वापस यमपुरी जाने का आदेश दिया। ऐसा मानना है कि यह घटना बैसाखी के दिन पूर्व संध्या को घटित हुई थी। आज भी चार धाम यात्रा करने के बाद लोग मार्कंडेय में पवित्र स्नान को पहुंचते हैं।