मानव मुक्ति का मार्ग

सद्गुरु  जग्गी वासुदेव

अपने जीवन में और खास तौर पर अपने बच्चों के जीवन में ध्यान देने की प्रवृत्ति लाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। आखिर में बात चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक दुनिया से आप को उतना ही मिलता है जितना आप ध्यान देने को तैयार हैं। सांस पर ध्यान देना वैसे तो एक जबरन प्रयास है। लेकिन यह आपको सचेत करने का एक तरीका भी है। महत्त्वपूर्ण चीज अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, बल्कि अपनी जागरूकता के स्तर को इतना ऊंचा उठाना है कि आप स्वाभाविक रूप से अपनी सांस के प्रति सचेत हो जाएं। सांस लेना एक यांत्रिक प्रक्रिया है। मूल रूप से देखें तो जब भी आप सांस लेते या छोड़ते हैं, तो आप के शरीर में स्पंदन होता है। जब तक आप अपने मनोवैज्ञानिक ढांचे में पूरी तरह मग्न हैं, तभी तक आप का ध्यान सांस पर नहीं होता। यदि आप अपनी भावनाओं या विचारों में पूरी तरह नहीं खोए हैं और आप बस शांति से बैठते हैं तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि आप का ध्यान अपनी सांस की प्रक्रिया पर न जाए। किसी चीज को अपनी जागरूकता में लाना कोई काम नहीं है। इसके लिए कोई प्रयास नहीं करना पड़ता।  हम जब कोई खास प्रक्रिया सिखाते हैं, तो लोगों को सांस पर ध्यान देने के लिए कहते हैं, क्योंकि उनमें जागरूकता का आवश्यक स्तर नहीं होता। लेकिन अगर आप बस आराम से बैठें, तो ऐसा नहीं हो सकता कि आप अपनी सांस के प्रति सचेत न हों, जब तक आप अपने विचारों में खोए हुए न हों। तो अपने विचारों में खोए मत रहिए, इनका कोई खास महत्त्व नहीं है, क्योंकि यह बहुत सीमित जानकारी से आते हैं। आप अगर अपनी सांस के साथ रहें, तो यह आप को एक बड़ी संभावना की ओर ले जा सकता है। आप अगर बस बैठते हैं या लेटते हैं, एकदम स्थिर हो कर, तो आप की सांस एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया बन जाएगी और यह हर समय चलती ही रहती है। यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कैसे इतने सारे लोग इस पर ध्यान दिए बिना जीते हैं, अपने जीवन के हर पल में बिना इसकी जागरूकता के। अपनी सांस पर ध्यान देना वहां पहुंचने का एक तरीका है। आप में से जिन लोगों ने शून्य की दीक्षा ली है, वे देख सकते हैं कि जैसे ही आप बिना कुछ किए शांत हो कर बैठते हैं आप की सांस अचानक ही बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती है। वास्तव में सांस एक बहुत बड़ी चीज है, बस आप को तब तक यह बात पता नहीं चलती जब तक आप इसे खो नहीं देते। आप ने भज गोविंदम मंत्र सुना होगा जिसमें यह भी आता है, निश्चल तत्त्व जीवन मुक्ति। इसका अर्थ यह है कि अगर आप बिना विचलित हुए, किसी एक ही वस्तु पर लगातार ध्यान देते हैं चाहे वह कुछ भी हो, तो मुक्ति को, मुक्ति की संभावना को आप के लिए नकारा नहीं जा सकता। दूसरे शब्दों में मनुष्य की मूल समस्या ध्यान की कमी ही है। ध्यान देने के पैनेपन और तीव्रता से आप बह्मांड का कोई भी दरवाजा अपने लिए खोल सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप का ध्यान कितना पैना और तीव्र है और इस ध्यान के पीछे कितनी ऊर्जा है? इस संदर्भ में सांस एक सुंदर साधन है क्योंकि यह हमेशा ही चलती रहती है। जब तक हम जीवित हैं।