मुसीबतों से डरकर उम्मीद न छोड़ें

मेरा भविष्‍य मेरे साथ-20

सेना में सुबह शारीरिक अभ्यास, दोपहर को हथियारों की मेंटेनेंस एवं युद्ध कला प्रशिक्षण होते हैं। शाम को खेलकूद तथा रात्रि में कुछ समय के लिए नाइट ट्रेनिंग आदि की दिनचर्या के साथ-साथ कुछ साप्ताहिक, मासिक एवं वार्षिक प्रशिक्षण अभ्यास करवाए जाते हैं, ताकि सैनिक शारीरिक, मानसिक तौर से फिट एवं युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहें। इसी तरह के वार्षिक फील्ड फायर यानी टैंक से फायर करने के अभ्यास के लिए हमारी यूनिट राजस्थान के पोखरण पहुंची। मैं गनरी अफसर यानी फायर कंडक्ट करने की  जिम्मेदारी निभा रहा था। प्रोफेशनल तौर से हर तरह तैयारी तथा धर्मगुरु द्वारा पूजा-हवन के पश्चात हमने फायर शुरू किया। टैंक में तीन आदमी का क्रू, दो जगहों से आपरेटर करता है, अगला हिस्सा ड्राइवर कंपार्टमेंट, तथा  गनर व कमांडर पिछले हिस्से यानी फाइटिंग कंपार्टमेंट से काम करते हैं। फायर के दौरान गोला गन के ब्रीच एंड, फंग कंपार्टमेंट से लोड होता है और मजल एंड ड्राइवर कंपार्टमेंट के ऊपर से निकलता है। कुछ आधारभूत तैयारियों में से एक ड्राइवर कंपार्टमेंट का बंद होना चैक कर, गनरी ऑफिसर करीब 100 मीटर पीछे से रेडियो फ्रीक्वेंसी से हर चीज पर नियंत्रण कर फायर का हुकम देता है। फायर शुरू होने के कुछ देर बाद एक टैंक के फायर करते ही अजीब सी आवाज आई और टैंक के फाइटिंग कंपार्टमेंट से आग की लपट निकली और आसपास धुआं ही धुआं हो गया। इतने में हर तरफ  से आवाज आने लगी, साहब गन ब्लास्ट हो गई, गन फट गई। तब सावधानी से ब्लास्ट टैंक से कमांडर, गनर एवं ड्राइवर को अधजली हालत में बाहर निकाल अस्पताल भेजा तथा टैंक पर अग्निशामक, रेत  व पानी फेंक आग बुझाने की कोशिश की। एक्सीडेंट के कारण को जानने की कोशिश शुरू हुई। एम्युनिशन जिससे हादसा हुआ था, उस लॉट को अलग कर दिया गया। सारी यूनिट में दहशत का माहौल था और इस दौरान फायर को जारी रखना बहुत जरूरी था। शाम को मैंने बाकी अधिकारियों से चर्चा करने के बाद मेन एम्युनिशन का फायर करने के बजाय स्मोक लांचर से फायर करने का निर्णय लिया, पर  बदकिस्मती से फिर एक हादसा हुआ और हमारे एक सूबेदार का हाथ उड़ गया। फायर बंद कर दिया गया, सीनियर अधिकारियों से आदेश आने लगे, हादसों के कारण जानकर ठीक ढंग से अभ्यास शुरू करवाया जाए। उस रात पूरी यूनिट सदमे में थी । मैं सो नहीं पा रहा था, अंततः रात को 1:00 बजे, यूनिट के सीओ से डिस्कस कर मैंने सुबह पांच बजे एक टैंक, फायर के लिए लगाने का हुकम दे दिया। दूसरे दिन सुबह 5 : 00 बजे फायरिंग रेंज पर सारी यूनिट पहुंच गई, एक टैंक तैयार खड़ा था। सब तैयारी के बाद फायरिंग क्रू का नाम नहीं आया, पूछने पर बताया गया कि साहब हर यूनिट के फायर में गन ब्लास्ट के हादसे हो रहे हैं, सैनिक डरे हुए हैं और फायर करने से हिचकिचा रहे हैं। जानते-बूझते हुए भी कि एम्युनिशन में प्रॉबल्म है, बेवजह सैनिकों को शहीद करवाने से अच्छा होगा कि उच्च अधिकारियों से बात कर सही जांच करवाकर एम्युनिशन बदली करवाया जाए। मैंने उनको समझाया कि फाइटिंग कंपार्टमेंट में आग पहुंचने का कारण ड्राइवर कपोले का ठीक से बंद न होना था, पर कोई मानने को तैयार नहीं था। उनकी बातों में कुछ गलत नहीं था, पर समय और हालात के अनुसार उस वक्त फायर जारी करना बहुत ही जरूरी था। यूनिट के 2आईसी ( उपकमान अधिकारी) जो हिमाचली थे, हम दोनों ने खुद फायर करने का निर्णय लिया। सारी तैयारी के बाद ड्राइवर कपोला अच्छी तरह बंद कर 2आईसी कमांडर और मैं गनर सीट पर बैठा और फायर शुरू कर दिया। तीन गोले बिलकुल सही फायर हुए और चौथे गोले में फिर से गन ब्लास्ट हो गई, पर इस दौरान ड्राइवर कपोला बंद होने से आग फाइटिंग कंपार्टमेंट में नहीं आई। तब सभी सैनिकों को विश्वास हो गया कि अगर तैयारी सही ढंग से की गई हो तो हादसा होता ही नहीं है और अगर हो भी जाए तो नुकसान बहुत कम होता है। उसके बाद पूरी फायरिंग इत्मिनान से की गई। उस फायर में कुल तीन गन ब्लास्ट हुई, पर किसी भी ह्यूमन लाइफ का नुकसान नहीं हुआ। यह एक ऐसा अनुभव था, जिसने सिखाया कि मुसीबत आने पर उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और पूरी तैयारी के साथ प्रयत्न करने से सफलता जरूर हासिल होती है।