यह मुल्क मुगलों का

इस शीर्षक से चौंकिए मत। हमारा देश भारत संप्रभु, स्वतंत्र और गणतांत्रिक है। यह देश न तो मुगलों का है, न ही अंग्रेजों का है और न ही उनसे पहले के आततायियों का है। यह देश 5000 साल से अधिक प्राचीन सनातन और वैदिक सभ्यता-संस्कृति का है। देश पर किसी ने भी हुकूमत की हो, लेकिन इसका बुनियादी चरित्र नहीं बदला है। दरअसल हम पुराना इतिहास दोहराने नहीं जा रहे हैं। आज के दौर का सबसे गौरतलब और विवादास्पद संदर्भ नागरिकता संशोधन कानून है। सर्वोच्च न्यायालय ने 141 विरोधी और मात्र 2 समर्थक याचिकाओं की पहली तारीख पर न तो किसी को राहत दी है और न ही किसी पक्ष के खिलाफ  टिप्पणी की है। न्यायाधीशों ने स्पष्ट कर दिया कि सीएए पर तुरंत अंतरिम रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि यह निर्णय पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ लेगी। फिलहाल केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए चार सप्ताह का वक्त दिया गया है। शीर्ष अदालत ने यह भी तय किया है कि उच्च न्यायालय सीएए पर सुनवाई नहीं कर सकेंगे। पूर्वोत्तर में असम और त्रिपुरा की याचिकाएं अलग से सुनी जाएंगी। यानी नागरिकता संशोधन कानून पर जो माहौल देश के कई हिस्सों में बना है, वह फिलहाल जारी रहेगा। देश भर से तनाव की खबरें आ रही हैं। मुस्लिम संगठन आपस में पैसा मुहैया करा रहे हैं, ताकि आंदोलन को विस्तार दिया जा सके। ऐसी भी अंदरूनी सूचनाएं हैं कि 15 फरवरी के आसपास या कुछ बाद में मुस्लिम संगठन राष्ट्रीय स्तर पर संगठित होकर आंदोलन को नई शक्ल देंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा किया जा रहा है कि वह इंसाफ  करेगी और कानून की वैधता पर सवाल करेगी। इस विकल्प के अलावा सिर्फ  यह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी मुसलमानों के प्रतिनिधियों को अलग-अलग समूहों में बुलाएं और उन्हें कानून का मर्म बताते हुए आश्वस्त करें। इनके अलावा कोई और विकल्प नहीं है कि मुस्लिम अगुवाई के आंदोलन शांत किए जा सकें। बहरहाल बातचीत और तर्क-वितर्क  सीएए के पहलुओं तक सीमित रहते, तो उसे देश की सहज प्रतिक्रिया माना जा सकता था, लेकिन यह लड़ाई मुगलों और बाप-दादा तक ख्ंिच गई। मुस्लिम नेता ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ने सार्वजनिक मंच से कहा-‘मुगलों ने 800 साल तक इस देश पर राज किया है। हमारे बुजुर्गों ने चार मीनार दी, जामा मस्जिद बनवाई, कुतुबमीनार और ताजमहल बनवाए, वह लालकिला भी बनवाया, जिस पर प्रधानमंत्री हर साल 15 अगस्त को तिरंगा फहराते हैं। हमारे बाप, दादा और परदादा ने इस मुल्क को इतनी मीनारें दीं। तेरे बाप ने क्या दिया?’’ यह किसके बाप की ओर इशारा था? क्या ओवैसी और उनके समर्थक मुस्लिम मुगलों के वंशज हैं? कुतर्क यहीं समाप्त नहीं होता। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री एवं एनसीपी नेता इससे आगे जाकर सवाल करने लगे कि आप बता सकते हैं कि आपके दादा, परदादा का अंतिम संस्कार कहां हुआ? एक मुसलमान बता सकता है, क्योंकि उसे अपने बाप, दादा, परदादा की कब्र पता है। यह कैसा विमर्श शुरू हुआ है? यह किस राजनीतिक और वैचारिक संस्कृति की भाषा है? अब हिंदू की चिता पर भी सवाल किए जाएंगे? उसका अंतिम संस्कार तो अग्नि में जाकर कर दिया जाता है। वह पंचतत्व में विलीन हो जाता है। औसत हिंदू कैसे बता सकता है कि अंतिम संस्कार कहां हुआ? दरअसल यह गटर की सियासत की भद्दी गाली है। क्या अब केंद्रीय कानून मुर्दों पर भी लागू होगा? इस सांप्रदायिक और फिजूल बहस का सीएए से क्या लेना-देना? कागज किसने मांगे हैं? कौन-से कागज मांगे गए हैं? यह व्यर्थ का वितंडावाद बनाया जा रहा है। ऐसी बहस में उलझे हमारे कथित नेताओं को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि भारत का लोकतंत्र सूचकांक 10 स्थान नीचे गिर गया है और अब वह 167 देशों की सूची में 51वें स्थान पर है। प्रेस की आजादी को लेकर 180 देशों में भारत का स्थान 140वां है। इनका बुनियादी कारण देश में नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट बताया जाता है। इसके परिप्रेक्ष्य में सीएए और देश के मौजूदा हालात भी हैं। वैश्विक रपट बताती है कि अब हम ‘दोषपूर्ण लोकतंत्र’ में रहते हैं।