राष्ट्रीय मंच पर नड्डा

राष्ट्रीय मंच पर हिमाचल से निकलकर कोई हस्ती अगर मुकाम पाती है तो इस कारवां की चर्चा हमेशा रहेगी। यह हिमाचल से सियासत का नया रिश्ता और युवा सीढि़यों से देश में चर्चित होने की ताजातरीन प्रासंगिकता है। अपने सियासी सफर के शिखर पर जगत प्रकाश नड्डा ने पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन कर, काबिलीयत, विश्वसनीयता व रणनीतिक कौशल को प्रमाणित किया है। वह अमित शाह के उत्तराधिकारी के रूप में विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल के मुखिया बने हैं, तो ऐसे आरोहण की करवटें भाजपा में उन्हें बड़े मंच पर प्रतिष्ठित करती हैं। जाहिर है राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी कद्दावर मानने से भी पहले उन्हें सत्ता और संगठन के बीच इस रूप में अंगीकार करती है कि चुनावी कसरतों में यह शख्स कई राज्य सरकारों के गठन में सफल रहा है। भाजपा क्योंकि भारतीय राजनीति में सहज परंपरा नहीं है और पार्टी की सक्रियता में चुनौतियां और लक्ष्य स्पष्ट हैं, तो नड्डा के लिए यह पद एक नए परिश्रम की शुरुआत है। देश के सामने सरकार की नीतियां जिस विरोध का सामना कर रही हैं, वहां राजनीति की समांतर शक्ति का प्रदर्शन निरंतर रहेगा। केंद्र सरकार की अवधाराण में देश जिन मुद्दों को खंगाल रहा है, वहां भाजपा की राजनीतिक सोच व आरएसएस के ऊर्जा स्रोत मुखर हैं। ऐसे में राजनीति अपने तौर पर नए संघर्ष करेगी, तो विपक्ष के विरोध के सामने खुद को सशक्त भी करेगी। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 से छिटक कर देश की व्यग्रता में वहां अमन की नई व्याख्या का समाधान देखना होगा, तो राष्ट्रीय नागरिक कानून की परिभाषा में फंसे संशय और शिकायत को देखते हुए राजनीतिक मुठभेड़ें बढ़ेंगी। ऐसे विषयों के साथ युवाओं का विमर्श अगर अपनी तरलता के साथ बहने लगा, तो यह संकेत सियासत की दृष्टि को प्रभावित कर सकते हैं। कहना न होगा कि भाजपा को फिर से अपने संदेश ऊंचे व सर्वमान्य बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी। ऐसे में नड्डा केवल अमित शाह नहीं हो सकते और न ही अब वह दौर बचा है जब केवल विचारधारा की उग्रता के बल पर भाजपा मतदाताओं का धु्रवीकरण कर सकती है। भाजपा को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रश्नों में पूंजीवाद के असफल प्रयोग से हटकर आरएसएस की उन्हीं जड़ों में प्रवेश करना पड़ेगा, जो स्वदेशी आंदोलन से ग्रामीण परिवेश तक के राष्ट्रीय संकल्प को जोेड़ती है। बेशक सिक्के के जिस पहलू में जगत प्रकाश नड्डा खड़े हैं, वहां अमित शाह के तेवर और तिलिस्म बरकरार रहेगा, लेकिन पार्टी के अवचेतन के बाहर चुनावी चुनौतियां एकत्रित हैं। कई खो चुकी राज्य सरकारें भाजपा के लिए आत्मचिंतन व आत्म विश्लेषण के विषय संबोधित हैं, तो इस दौर में नड्डा के लिए आसान पथ नहीं होगा। वह पूर्ववर्ती सायों से हटकर अपने लिए कितनी स्वतंत्र धूप ले आते हैं, इस पर उनकी कार्यशैली का नया आगाज देखना होगा। हिमाचल के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नड्डा की ताजपोशी अगर खुशखबरी है, तो यह भी समझना होगा कि प्रदेश के समीकरणों में आ रहे बदलाव में उनके प्रति जवाबदेही बढ़ेगी। एक नए राज्याध्यक्ष डा. राजीव बिंदल के रूप में हिमाचल भाजपा के प्रयास क्या रंग लाते हैं, इस पृष्ठभूमि में जगत प्रकाश नड्डा के प्रश्रय और परिश्रम का जिक्र होगा। काफी समय से हिमाचल सरकार और संगठन के पदों में बदलाव या नए चेहरों के आगाज में हालिया राजनीतिक घटनाक्रम महत्त्वपूर्ण है। भाजपा को सत्ता से संगठन तक नए बदलाव की जरूरत इन परिवर्तनों के सापेक्ष नया मजमून पैदा कर रही है। ऐसे में भाजपा प्रदेश के भौगोलिक व राजनीतिक संतुलन को देखते हुए मंत्रिमंडल विस्तार से संगठन में निश्चित रूप से कई बदलाव कर सकती है। अब सीधे केंद्र से मुखातिब होने का अर्थ नड्डा के प्रभुत्व को अंगीकार करना है। भाजपा में  नड्डा की ताजपोशी का फलक बड़ा हो सकता है, लेकिन इस आरोहण की मिलकीयत में प्रदेश की हैसियत का नूर क्या होगा, देखना पड़ेगा।