विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

विवेक जाग्रत हो और विषय भोगों की निरर्थकता एवं उनकी हानियों को गहराई से समझ लिया जाए तो इन हारमोनों का प्रवाह सहज ही कुंठित हो जाता है। इसी प्रकार वियोग, विश्वासघात, अपमान जैसे आघात अंतःकरण की गहराई तक चोट पहुंचा दें तो युवावस्था में भी भले चंगे हारमोन स्रोत सूख सकते हैं, इसके विपरीत यदि रसिकता की लहरें लहराती रहें तो वृद्धावस्था में भी वे यथावत गतिशील रहे सकते हैं…

-गतांक से आगे….

उपचार का उद्देश्य तो तभी पूरा हो सकता है, पर यह स्थिति हाथ नहीं आ रही है। शरीरशास्त्रियों के सारे प्रयत्न अब तक निष्फल ही रहे हैं और आगे भी इनकी अद्भुत संरचना और कार्य पद्धति को देखते हुए कुछ अधिक आशा नहीं बंधती। ओछी भावनाएं अंतरात्मा में जमी हों और छोटा बनाने वालों पर बड़प्पन के संस्कार जम जाएं, तो शरीर को ही नहीं, मस्तिष्क को भी बड़ा बनाने वाले हारमोन उत्पन्न होंगे। इंद्रिय भोगों में आसक्त अंतः भूमिका अपनी तृप्ति के लिए कामोत्तेजक अंतःस्रावों की मात्रा बढ़ाती है। विवेक जाग्रत हो और विषय भोगों की निरर्थकता एवं उनकी हानियों को गहराई से समझ लिया जाए तो इन हारमोनों का प्रवाह सहज ही कुंठित हो जाता है। इसी प्रकार वियोग, विश्वासघात, अपमान जैसे आघात अंतःकरण की गहराई तक चोट पहुंचा दें तो युवावस्था में भी भले चंगे हारमोन स्रोत सूख सकत हैं, इसके विपरीत यदि रसिकता की लहरें लहराती रहें तो वृद्धावस्था में भी वे यथावत गतिशील रहे सकते हैं। जन्मांतरों की रसानूभूति बाल्यावस्था में भी प्रबल होकर, उस स्तर की उत्तेजना समय से पूर्व ही उत्पन्न कर सकती है। काम-क्रीड़ा शरीर द्वारा होती है, कामेच्छा मन में उत्पन्न होती है। पर इन हारमोनों की जटिल प्रक्रिया न शरीर से प्रभावित होती है और न मन से। उसका सीधा संबंध मनुष्य की अंतःचेतना से है, इसे आत्मिक स्तर कह सकते हैं। जीवात्मा में जमे काम बीज जिस स्तर के होते हैं, तदनुरूप शरीर और मन का ढांचा ढलता और बनता-बिगड़ता है। हारमोनों को भी प्रेरणा-उत्तेजना वहीं से मिलती है। धान के दाने के बराबर धूसर रंग की इस छोटी-सी गं्रथि में आश्चर्य ही आश्चर्य भरे पड़े हैं। जिन चूहों में दूसरे चूहों की पीनियल ग्रंथि का रस भरा गया, वे साधारण समय की अपेक्षा आधे दिनों में ही यौन रूप में विकसित हो गए और जल्दी बच्चे पैदा करने लगे। समय से पूर्व उनके अन्य अंग भी विकसित हो गए, पर इस विकास में जल्दी भर रही, मजबूती नहीं आई। काम दहन की शिवजी की कथा की इन हारमोन से संगति अवश्य बैठती है, पर अंतःकरण का रुझान जिस स्तर का होगा, शरीर और मन को ढालने के लिए हारमोनों का प्रवाह उसी दिशा में बहने लगेगा।    

 (यह अंश आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा रचित पुस्तक ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं।)