श्री गोरख महापुराण

गतांक से आगे…

आज्ञा हो तो हम लोगों का मनोरंजन करें। मैनाकिनी रानी इस समय दुःख से परेशान थी, परंतु मन बहलाव के लिए स्वीकृति दे दी। स्वीकृति मिलते ही सेविका ने कलिंगा सुंदरी को आकर बताया कि स्वीकृति तो मिल गई है, परंतु महारानी कुछ अनमनी सी बैठी है। मनोरंजन करने पर काफी पुरस्कार मिलने की संभावना है। कलिंगा सुंदरी शीघ्र ही अपनी सखियों को व स्त्री भेषधारी गोरखनाथ को साथ लेकर दरबार में पहुंची और महारानी का अभिवादन किया। महारानी मछेंद्रनाथ के साथ रत्नजडि़त सिंहासन की शोभा बढ़ा रही थी। कलिंगा सुंदरी की सभी सखियों ने अपने-अपने साज ठीक किए। तब गोरखनाथ ने अपना मृदंग बजाना प्रारंभ किया।

कलिंगा सुंदरी ने अपने मधुर कंठ से गाना प्रारंभ किया जिससे सभी स्त्री सभा मोहित हो गई। फिर अपना गाना बंद कर उसने नाचना आरंभ किया जिसकी सभी महिलाओं ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। तभी कुछ महिलाओं का मृदंग की थाप की तरफ गया, जो थाप बड़ी अद्भुत थी। चेत मछेंद्र गोरख आया। मृदंग की धुन सुनकर महारानी भी बैरानी सी हो गई, परंतु मछेंद्रनाथ अधिक बेचैन हो गए। मृदंग की धुन से उन्हें विशेष बोध मिल रहा था कि चेत मछेंद्र गोरख आया। धीरे-धीरे यह शब्द ज्यादा साफ हो गए। जिससे मछेंद्रनाथ की व्यकुलता और भी बढ़ गई और उनका सिंहासन पर बैठना दूभर हो गया। उन्हें अधिक बेचैन देखकर महारानी ने पूछा मुझे लगता है कि आपको नृत्य पसंद नहीं आया। आप कहें तो बंद करवा दिया जाएगा। मछेंद्रनाथ बोले, अच्छा लगा या नहीं लगा, पर सचेत जरूर कर दिया गया हूं। रानी ने उत्सुकता से पूछा मैं आपके कहने का अभिप्राय समझ नहीं पाई। मछेंद्रनाथ बोले, नहीं समझ पाई, तो अब समझने का प्रयत्न करो कि इस मृदंग से कौन सी ध्वनि आ रही है। रानी बोली कि आप ही बताएं मुझे तो इसकी समझ नहीं है। मछेंद्रनाथ बोले मृदंग की धुन कह रही है चेत मछेंद्र गोरख आया। अगर मन लगाकर सुनोगी, तो समझ में आ जाएगा। गोरखनाथ ने धुन को और साफ करके बजाया। तब रानी बोली, शब्द तो कुछ इसी प्रकार के हैं। परंतु अभिप्राय क्या है? जो आप इतना बेचैन हो रहे हैं। मछेंद्रनाथ बोले, अभिप्राय तो स्पष्ट है कि गोरखनाथ आ पहुंचा है और मुझे उसके साथ जाना पड़ेगा। महारानी मैनाकिनी हनुमान जी द्वारा पहले से ही सचेत थी। अब उसकी समझ में आ गया कि स्त्री भेषधारी मृदंग वादिका और कोई नहीं गोरखनाथ है। उसने फिर भी गोरखनाथ को वहां से हटाकर दूसरी स्त्री से मृदंग बजवाया पर किसी ने वैसी धुन नहीं बजाई। अंत में रानी ने फिर से गोरखनाथ को आदेश दिया। अब धुन पहले के समान ही बजने लगी।  अब रानी को पूरा विश्वास हो गया कि यह स्त्री भेषधारी गोरखनाथ ही है। उसने तुरंत ही गोष्ठी समाप्त कर दी। कलिंगा सुंदरी को पुरस्कार देकर विदा किया और मृदंग वादिका को वहीं बैठे रहने को कहा। तब कलिंगा सुंदरी ने भयभीत होकर कहा, महारनी जी इसे न रोकिए। इसके बिना तो हमारा व्यापार ही समाप्त हो जाएगा। हमें इतनी बढि़या मृदंग वादिका मिलना मुश्किल है। महारानी बोली, यह स्त्री नहीं पुरुष है और हमारे राज्य में पुरुष प्रवेश वर्जित है। तुमने इसे यहां नारी वेश में लाकर घोर अपराध किया है। राज्य के नियम के अनुसार तुम्हें पुरस्कार की बजाय दंड मिलना चाहिए।

हमने तुम्हें तुम्हारे प्रदर्शन से प्रसन्न होकर सकुशल छोड़ दिया है। परंतु यह भेषधारी यहां से नहीं जा सकता। महारनी की गंभीर बात सुनकर कलिंगा सुंदरी अपनी खैर मना सखियों के साथ वहां से चल पड़ी। परंतु उसे गोरखनाथ के पकड़े जाने का अपार दुःख हुआ।          – क्रमशः