सत्ता विस्तार का कदमताल

हिमाचल में प्रस्तावित मंत्रिमंडल के विस्तार में देखना होगा कि वर्चस्व और विवादों से हटकर कितना संतुलन पैदा होता है। जैसा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर अपनी हालिया प्राथमिकताओं में इस जिक्र से हलचल पैदा करते हैं, तो राजनीति के फलक पर एक साथ सुबह का इंतजार शुरू होता है। इसे सरकार की दृष्टि से भी देखना होगा कि किस मंत्री का प्रदर्शन कमजोर रहा या सरकार की गति में अब कहां जोर होना चाहिए। मंत्रिमंडल को कोटा बना देना भी औचित्यहीन होगा, लेकिन कुछ विभाग ऐसे हैं जो सरपट दौड़ना चाहते हैं। ऐसा भी महसूस होता है कि कुछ मंत्रियों से चस्पां विभाग अपनी स्थिति सुधारने की गुजारिश कर रहे हैं, तो राज्य के अलग-अलग भू-भाग में सियासी संतुलन की उम्मीद बढ़ जाती है। सरकार चाहे तो जनमंच में उठती आवाजों के बीच विभागीय प्रदर्शन को माप ले या मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के प्रश्नों के बीच विभागीय आबंटन के लिए नया उम्मीदवार ढूंढ ले। जो भी हो मंत्रिमंडल विस्तार की निशानियों पर चलते कुछ नेता अपने भविष्य का नया दीदार चाहते हैं, तो साहस के दमखम पर मुख्यमंत्री के एहसास को एहसान में परखने का यह दौर कठिन है। यह इसलिए कि जो उछले और जिनके नाम पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का पद अपना पर्दा हटा रहा था, वहां भारी फेरबदल से डा. राजीव बिंदल का मंच पैदा हो गया। यह सहज होता, तो विवादों के मिलन समारोह के मंच पर ‘हाथ मिलाने’ की फुर्सत को कोई टेढ़ी आंखों से न देखता। यहां असहज होती राजनीति का किरदार अगर यह प्रदेश है, तो हम टापुओं पर खड़े होकर आम जनता को नजरअंदाज कर रहे हैं। इसीलिए अगर मंत्रिमंडल की राह से दूर रहे रमेश धवाला को सत्ता के टापू नहीं देखते, तो आगामी चुनाव की बागडोर में उस रस्सी के बल देखने होंगे जो धीरे-धीरे सुलग रही है। क्या मंत्रियों के मौजूदा आवरण में हिमाचल सरकार को केंद्र पूरे नंबर दे रहा है या डबल इंजन की संज्ञा में कुछ चेहरे हांफ रहे हैं। विभागीय तौर पर परिवहन का बेड़ा अगर एचआरटीसी को शर्मिंदा करता है, तो यह मंत्रालय सुधार की गुंजाइश रखता है। सड़क पर बाहरी प्रदेशों की बसों के मुकाबले हिमाचल की सरकारी बस बेबस है, तो बदलाव की जरूरत है। निजी स्कूलों की तरफ भागती जनता को देखें , तो सुधार के उपक्रम में सरकार के रुतबे का असर देखा जाएगा। कमोबेश हर उस फाइल पर नजर होगी जो  दिल्ली से मंजूर होकर लौटी होगी या जो फंस गई, तो मंत्री के हालात पर बात होगी। कई विभाग सरकार के दो साला जश्न में भी खामोश रहे, तो उस फेहरिस्त को भी देखा जाए जो निजी निवेश की शाबाशियों का अर्थ बताती है। ऐसे में देखना यह भी होगा कि विपक्ष किस विभाग पर आंखें उठा रहा है या कहां आलोचना का सबब कुछ तो संशय के पास खड़ा है। अगर सीमेंट के भाव किसी जल्लाद की तरह बरसते और प्रति बोरी दस रुपए बढ़ जाते हैं, तो प्रदेश के उत्पादन में यह आग किसने लगाई। सरकार को देखने या उससे पूछने का एक नजरिया विपक्षी हो सकता है, लेकिन जहां सीधी सड़क पर गड्ढे हों तो प्रशंसक का वाहन भी धंस सकता है। ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार केवल दो खूंटों का चुनाव न होकर कर्मठता का हिसाब हो, ताकि तीसरे बजट पर पहुंची सरकार अपने गंतव्यों को सफल कर सके। विपक्ष के आरोपों को नकार कर मुख्यमंत्री ने ऊपरी और निचले हिमाचल की दीवारें तोड़ी हैं और टूटनी भी चाहिएं, लेकिन सत्ता में भागीदारी के सवाल पर, जनता की महत्त्वाकांक्षा भी हाजिर होती है। बिंदल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद सत्ता के साधन में मंत्रिमंडल का विस्तार जिन क्षेत्रों को मापेगा, उनमें सबसे अधिक विधायक देने वाले कांगड़ा को इंतजार रहेगा। यह इसलिए भी कि यहां शीतकालीन प्रवास की अहमियत लगातार घट रही है। जो सौगातें और भावनात्मक एकता की रिवायतें वीरभद्र सिंह ने शुरू कीं, उनकी बौछार रुक सी गई है। यहां दिल, जिक्र और जुबां से आगे एक हल्का सा स्पर्श चाहिए, जो सरकार के साथ क्षेत्रीय अस्मिता के साथ हाथ मिलाए। मंत्रिमंडल का विस्तार कोई विचार नहीं, सियासत के आगे खड़ी बाधाओं का समाधान भी तो हो सकता है, बशर्ते कुछ चिकने घड़े तोड़े जाएं और कुछ नए आयाम जोड़े जाएं।