सबसिडी हंगामों के लिए नहीं

देश में हंगामा क्यों बरपा है? जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी नए सिरे से खुली तो छात्रों ने कुलपति दफ्तर का घेराव कर लिया। कुलपति प्रो. नजमा अख्तर बाहर आकर आंदोलित छात्रों से मुखातिब हुईं, तो सवालों की बौछार शुरू हो गई। छात्रों के सवालों और जिज्ञासाओं को शांत करने की कोशिश की गई, तो फिर ढाक के तीन पात…। अंततः देर शाम प्रशासन को परीक्षाओं की तारीख आगे बढ़ाने और पुलिस के खिलाफ एफआईआर सरीखी मांगें माननी पड़ी, तो छात्रों का धरना समाप्त हुआ। माहौल में अब भी आवेश और आक्रोश है। जेएनयू के छात्र संघ प्रतिनिधियों की मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव से कई दौर की बातचीत हो चुकी है। अध्यापक संघ वालों ने भी संयुक्त सचिव से मिलकर ज्ञापन दिया है। विश्वविद्यालय का नया सत्र लोहड़ी पर्व पर शुरू होना था, लेकिन होने नहीं दिया गया। छात्रों और अध्यापकों के एक वर्ग को कुलपति का इस्तीफा चाहिए। जेएनयू में पंजीकरण विधिवत शुरू हो पाया अथवा नहीं, यह भी असमंजस की स्थिति है। अलबत्ता नकाबपोशी हिंसा की पुलिस जांच शुरू हो चुकी है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जादवपुर यूनिवर्सिटी के हालात भी उग्र हैं। बेशक देश के 920 विश्वविद्यालयों के कुल करीब 20 करोड़ छात्रों का अराजकता, हिंसा और सांप्रदायिक सियासत से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन विवि और कालेजों के भीतर की पढ़ाई तो बाधित होती ही है। लिहाजा 208 कुलपतियों, पूर्व कुलपतियों और शिक्षाविदों ने जो ज्ञापननुमा पत्र प्रधानमंत्री मोदी को लिखा है, वह एक बड़ी घटना है और उसकी चिंताएं गौरतलब है। ये शिक्षक किसी राजनीतिक संगठन के कार्यकर्ता नहीं हैं। जिंदगी शिक्षा के मदिरों में पुजारी है। अध्ययन किया है और अध्यापन के लंबे अनुभव उनके पास है। वे शैक्षिक परिसरों की आत्मा बेहद  करीब से जानते है। यदि उन 208 शिक्षाविदों का साझा आरोप है कि वामपंथी राजनीति विवि के भीतर का माहौल बिगाड़ रही है, अराजक और रक्तरंजित करवा रही है और चाहती है कि छात्र पढें या न पढें, लेकिन उसके काडर की तरफ सक्रिय जरूर रहें। आखिर इन हंगामों के पीछे साफ तौर से कौन सी ताकतें हैं और कौन उन्हें फंडिंग कर रहा है, बेशक शिक्षाविदों के ऐसे सवालों की जांच की जानी चाहिए। विवि इस देश के हैं, वाम दलों के नहीं हैं, करदाताओं के पैसे से ये चलते हैं। सबसिडी पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए है, न कि हुड़दंगियों के लिए है। यदि हंगामा करना ही कुछ छात्रों का सरोकार है, तो बेशक वे नारे लगाएं, जुलूस निकालें, ढफली बजाकर आंदोलन खड़े करें, देश के अलग-अलग हिस्सों में अराजकता फैलाएं, लेकिन उन छात्रों से सबसिडी छीन लेनी चाहिए। वे किस आजादी और इंकलाब के नारे उछालते रहते हैं। हमारा देश स्वतंत्र, संप्रभु गणतंत्र है। हंगामेबाज भी इस देश के नागरिक हैं, पढ़े-लिखे हैं, तो वे हंगामा कर सार्वजनिक संपत्ति को फूंक कर, तोड़फोड़ कर किस आजादी का आह्वान करना चाहते हैं? वामपंथी राजनीति न तो प्रधानमंत्री रोक सकते हैं और न ही लोकतंत्र में ऐसा संभव है। वैसे भी यह राजनीति टिमटिमाते दीपक की मानिंद है, दुनिया से लगभग सफाया हो चुका है। अब सबसिडी छीनना ही एक असरकारक कदम हो सकता है, क्योंकि मुट्ठी भर जमात के लिए विवि को अराजकता का अड्डा नहीं बनने दिया जा सकता। देश में फिलहाल किसी क्रांति की गुंजाइश नहीं है। विवि सिर्फ पढ़ाई करने और युवाओं का कैरियर संवारने के लिए है। संविधान ने मौलिक अधिकार हंगामों के लिए नहीं दिए हैं। आपको व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठानी है तो वह आपका संवैधानिक अधिकार है, लेकिन विवि में हिंसा और अराजकता की फसल उगाकर देश को बर्बाद करने का कोई अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। दरअसल यह संकट तीन-चार विवि तक सीमित नहीं है। देश के बड़े और नामी 22 शैक्षणिक संस्थानों के जरिए हंगामा बरपा है। इस समस्या को तुरंत संबोधित किया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री और मंत्री समूह को विवि में छात्रों के बीच जाकर उनसे संवाद करना होगा, उनकी गुत्थियों को सुलझाना होगा, उन्हें समझना होगा कि हकीकत क्या है, बेशक वे राजनीतिक तौर पर पूर्वाग्रही हैं। यदि यथाशीघ्र इसका समाधान सामने नहीं आया तो स्थितियां विकराल हो सकती हैं और उनके नतीजे सुखद तो नहीं हो सकते।