हिमाचल की सियासत और विकास

हेमांशु मिश्रा

लेखक, पालमपुर से हैं

कदम मिलाकर चलने की कला हर किसी के बस की बात नहीं, यह कला नाटी के साथ सहज और स्वाभाविक ही आ जाती है। अनुशासन में रह कर नाटी डालने वाला ही लोकतंत्र का सच्चा सिपाही है। लोगों के अनुसार चल कर, नेतृत्व देते हुए उनके साथ आगे बढ़ना दायरा बढ़ाना, हां यही तो नाटी है। मानता हूं  कि विपक्षी राजनीति की भी कई मजबूरियां रहती हैं, विरोध के लिए विरोध करना पड़ता है, अखबारों में रहने के लिए विरोध करना पड़ता है, जनता का ध्यान भटकाने के लिए विरोध करना पड़ता है। उसमें नफरत का तड़का हो, ईर्ष्या के बीज हो या बंटवारे की फुहारें हो, विरोध करना लाजिमी ही हो जाता है। विपक्षी राजनीति के लबादे में हर वे शब्द तलवार बन जाते हैं जिसमें किसी भी वाद को विवाद में बदलने की जुम्बिश हो…

नाटी और खिचड़ी में नफरत का तड़का लगा कर धमाल नहीं हो सकता। हिमाचल की संस्कृति जनसामान्य में सद्भाव प्यार और एकता के भावों को सहेजने के लिए ही विकसित हुई। चाहे वह पंगत में एक साथ बैठ कर धाम हो, एक-दूसरे के हाथों को हाथ में थाम कर अपने दायरे को बढ़ाते हुए कदम से कदम मिलाते हुए नाटी डालते स्त्री-पुरुष, बच्चे-बूढ़े हों। यह भी नाटी की ही खूबसूरती है कि सबका साथ सबका विकास की परिपाटी को आगे बढ़ाने को हर एक को प्रेरित करती है। हिमाचल जहां कोस-कोस में भाषा बदलती हो, जहां कुछ डंगों में पानी का जायका बदलता हो, वहां सबके कदमों से कदम मिला कर चलना चुनौतीपूर्ण है। जहां सड़क निकालने के लिए अपनी निजी भूमि से 10 सेंटीमीटर भूमि देने में ही माथे पर लकीरें पड़ जाती हों, वहां दिलों को जोड़ते हुए फोरलेन परियोजनाओं को आकार देना, हवाई अड्डों और रेल मार्गों पर सहमति बनाना भी एक   कला ही है। कदम मिलाकर चलने की कला हर किसी के बस की बात नहीं, यह कला नाटी के साथ सहज और स्वाभाविक ही आ जाती है। अनुशासन में रह कर नाटी डालने वाला ही लोकतंत्र का सच्चा सिपाही है। लोगों के अनुसार चल कर, नेतृत्व देते हुए उनके साथ आगे बढ़ना दायरा बढ़ाना, हां यही तो नाटी है। मानता हूं  कि विपक्षी राजनीति की भी कई मजबूरियों रहती हैं, विरोध के लिए विरोध करना पड़ता है, अखबारों में रहने के लिए विरोध करना पड़ता है, जनता का ध्यान भटकाने के लिए विरोध करना पड़ता है। उसमें नफरत का तड़का हो, ईर्ष्या के बीज हो या बंटवारे की फुहारें हो, विरोध करना लाजिमी ही हो जाता है। विपक्षी राजनीति के लबादे में हर वे शब्द  तलवार बन जाती है जिसमें किसी भी वाद को विवाद में बदलने की जुम्बिश हो। परस्पर  सरल संवाद को भी नारों में बदलना विपक्षी राजनीति की ही मजबूरियों में शामिल है। इसीलिए कब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खुद को टुकड़े-टुकड़े गैंग के अंग-संग खड़ा कर दे, बयानवीरों  को भी पता नही चलता। सत्ता की भी मजबूरियों रहती हैं। जवाब दे सकते हैं,  फिर भी सद्भाव दिखाना पड़ता है। प्रहार कर सकते हैं, फिर भी सद्भाव दिखाना पड़ता है और आपके काम नीतियां, योजनाएं कितने भी सही हों, आलोचनाओं को सहते हुए सद्भभाव दिखाना पड़ता है। यह हिमाचल की खूबसूरती कहे कि 50वें राज्यत्व दिवस तक आते-आते,  अभी तक के सत्ताधारियों और विपक्ष ने कई बड़ी रिवायतों को अपने श्रम, कर्म और आचरण से खड़ा किया है। यह पहली बार है कि हम नफरत के तड़के में घी डाल घुलने -मिलने वाली खिचड़ी में भी जहर घोल रहे है। विकास एक सतत् प्रक्रिया है। हिमाचल में लगभग 3200 पंचायतों में आज तक 32,000 किलोमीटर सड़के बन गइर्ं, 15,500 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थान बन गए, 4500 से अधिक स्वास्थ्य संस्थान बन गए तो इसलिए की हिमाचल के सांस्कृतिक ताने-बाने को तोड़ने की हिमाकत किसी ने नहीं की। एक सरकार ने स्कूल कालेज खोलने की घोषणा की तो दूसरे ने उनकी दीवारें बनाई, परिसर सजाए, तीसरे ने अध्यापकों की नियुक्ति की और चौथे ने शिक्षा के स्तर को बढ़वाने का काम किया। जरा सोचिए यह सरकारों की प्रशासनिक नाटी ही तो है कदमों से कदम मिलाते हुए हिमाचल को आगे बढ़ाते रहे। आज हिमाचल के हर गांव में बिजली है पानी है लगभग हर गांव में सड़क है यह विकास के मानकों का सफर हाथ से हाथ पकड़ कर आगे बढ़ने को ही कहते हैं कि सत्ता बदलती रही, लेकिन सरकार लगातार चलती रही। हिमाचल आज देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर वास्तव में ईमानदार प्रयास करते हुए जनता की समस्याओं, शिकायतों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। इन्वेस्टर मीट से रोजगार के साधन बढ़ाना, हिमकेअर से स्वास्थ्य की चिंता, गृहिणी योजना से महिलाओं और पर्यावरण की चिंता की गई है, सरकारी नौकरियों में रिकॉर्ड भर्ती की गई हो, भ्रष्टाचार सहन न किया हो, संविधान के मुताबिक अपना व्यवहार कठोर भी लचीला भी रखा हो, संवैधानिक मर्यादाओं का हमेशा सम्मान किया हो तो, विपक्ष को अंकगणित के बिना भी सम्मान दिया हो तो, सामाजिक कल्याण की अनेक योजनाएं खुशहाल समाज की इमारत खड़ी करने के अनुपम प्रयास किए हो तो, ऐसे में नाटी डालना स्वाभाविक है। खिचड़ी से पर्यटन को पंख लगते हों, तत्तापानी और सुन्नी के इलाके में खुशहाली के जमीनी काम हो तो शिमला ग्रामीण और करसोग में ही नहीं हरोली सराज के साथ पूरे हिमाचल को इकट्ठे नाटी डालते रहना चाहिए।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक