120 करोड़ की साजिश

भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक विस्फोटक खुलासा किया है। उससे कई चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। बीते दिनों उत्तर प्रदेश में हिंसा का जो दौर सामने आया था, दंगे कराए गए थे, 25 मासूमों की हत्या की गई थी, ईडी ने खुलासा किया है कि उन्माद, आतंक और अराजकता के उस दौर के पीछे कौन था! बाद में दिल्ली के शाहीन बाग और देश के 100 से अधिक स्थानों, शहरों में आंदोलन खड़े किए गए, तो उनके पीछे किसकी साजिश थी? इसी दौरान विदेशों से पैसा आता रहा और वह एक संदिग्ध और सवालिया संगठन के बैंक खातों में जमा होता रहा। वहां से शाहीन बाग समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहरों-शामली, बिजनौर, डासना, हापुड़ आदि की एक तय भीड़ के खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया। पैसे का लालच देकर आंदोलन सुलगाए गए और उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा हिंसा में जलता रहा। हालांकि उस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश उत्तर प्रदेश सरकार ने गृह मंत्रालय को भेजी थी, लेकिन आज तक न तो आंदोलनों के साजिशकारों को गिरफ्तार किया गया और न ही उस ‘आतंकी’ संगठन पर पाबंदियां थोपी गईं। अब ईडी और गृह मंत्रालय की जांच रपटों में खुलासा किया गया है कि दिसंबर, 2019 और जनवरी, 2020 के बीच 73 बैंक खातों में कुल 120.5 करोड़ रुपए जमा किए गए। रपटों में तारीखवार ब्यौरे दिए गए हैं कि किस बैंक शाखा में कितनी राशि जमा की गई? यह भी खुलासा है कि किस तारीख को कितना पैसा निकाला गया और किसे दिया गया? बेशक इस संदर्भ में न हो, लेकिन प्रख्यात वकील एवं पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कबूल किया है कि उन्हें पॉपुलर फ्रंट ऑफ  इंडिया के खाते से 77 लाख रुपए का भुगतान किया गया। बेशक वह हादिया केस की पैरवी करने की फीस रही हो! सिब्बल के अलावा, इंदिरा जयसिंह और दुष्यंत दवे सरीखे वरिष्ठ वकीलों के नाम भी आरोपित सूची में दिखाए गए हैं। उन्होंने इन राशियों के भुगतान को बकवास करार देते हुए अपनी भूमिका से इंकार किया है। बहरहाल यह तो जांच के निष्कर्ष होंगे कि किसकी क्या भूमिका रही है, लेकिन अहम और नाजुक सवाल यह है कि क्या देश में अराजकता, हिंसा फैलाने और देश को तोड़ने की साजिशों के लिए विदेशों से फंडिंग की गई? इतना पैसा पीएफआई नामक संदिग्ध संगठन के खातों में कैसे आता रहा और किसी ने आपत्ति तक नहीं की? ईडी ऐसे ही लेन-देन की जांच करती है और मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों पर उसकी निगाह बनी रहती है। सवाल यह भी है कि पीएफआई की साजिशों में क्या एक प्रमुख राजनीतिक दल भी शामिल रहा है? पीएफआई की चर्चा लंबे समय से जारी है। उसे आतंकी गुट कहने और मानने में एक सांप्रदायिक तबके को आपत्ति हो सकती है, लेकिन रिकॉर्ड गवाह है कि पीएफआई के संबंध अलकायदा और आईएसआईएस सरीखे दुर्दांत आतंकी संगठनों के साथ रहे हैं। उसे सिमी नामक प्रतिबंधित आतंकी संगठन का ‘सार्वजनिक संस्करण’ भी माना जाता रहा है। यह दीगर है कि कुछ आतंकी केसों में साक्ष्यों की कमी के कारण उसके आतंकी जेलों से छूटते रहे हैं या कानूनन केस खारिज किए जा चुके हैं, लेकिन पीएफआई बेदाग करार नहीं दिया जा सकता। आज उसका विस्तार देश के 16 राज्यों में है, लेकिन मौजूदा 120 करोड़ रुपए की साजिश का मामला बेहद संवेदनशील है। ईडी को इसे यथाशीघ्र निष्कर्ष तक पहुंचाना चाहिए, ताकि अदालत अंतिम निर्णय दे सके। गृह मंत्रालय की रपट भी सामने है। वह तो पीएफआई को प्रतिबंधित घोषित कर सकता है। आंदोलन वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक कुछ भी हो सकता है। संविधान इसकी इजाजत देता है, लेकिन यदि आंदोलन देश को विभाजित करने की साजिशों में लिप्त है, तो संविधान कानूनन दंड देने की अनुमति भी देता है। व्याख्या सरकार को करनी है।