केजरीवाल की हैट्रिक के अनुमान

देश की राजधानी दिल्ली में अब चुनावी शोर शांत हो चुका है। इस शोर में आरोप-प्रत्यारोप के अलावा नफरत की भाषा भी थी। मुख्यमंत्री को आतंकी और नक्सली करार दिया गया। न जाने कैसा चुनाव था? बहरहाल जनता ने मताधिकार का इस्तेमाल कर दिल्ली अर्द्धराज्य की सत्ता तय कर दी। जनादेश 11 फरवरी को सार्वजनिक होगा, लेकिन परंपरा के मुताबिक एग्जिट पोल किए गए हैं। सर्वेक्षण की यह भी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। लोगों से बात कर एक निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। दिल्ली चुनाव के एग्जिट पोल और अनुमानित जनादेश के एक संदेश की बात करें, तो कहा जा सकता है-‘काम ही बोलता है।’ यह इस चुनाव का सूत्र-वाक्य भी साबित हो सकता है। अंततः मुख्यमंत्री केजरीवाल, उनकी सरकार और आम आदमी पार्टी (आप) का काम ही बोला, नतीजतन सत्ता की हैट्रिक का अनुमान सभी एग्जिट पोल का है। नंबर कम-ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन यह साझा निष्कर्ष है कि केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। विधानसभा की कुल 70 में से 50-65 सीटें ‘आप’ के पक्ष में जा सकती हैं। कुछ पोल ने 68 सीटों तक का अनुमान लगाया है। सीटों के अनुमान का इतना अंतर भी वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है। भाजपा को 5-20 सीटें मिल सकती हैं और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के हिस्से ‘शून्य’ आता लगता है। यह बड़ी राजनीतिक विडंबना है कि कांग्रेस के पक्ष में 5-7 फीसदी वोट का ही अनुमान लगाया गया है। स्पष्ट है कि धीरे-धीरे कांग्रेस खत्म हो रही है और एक क्षेत्रीय दल बनकर रह सकती है, जो दूसरे दलों के कंधों पर चढ़ कर कहीं-कहीं सरकार में आ सकता है। बहरहाल दिल्ली विधानसभा के लिए जनादेश के अनुमान सोचने को बाध्य करते हैं। बेशक प्रधानमंत्री मोदी अब भी सबसे लोकप्रिय नेता हैं और आज भी उनकी स्वीकार्यता बरकरार है। यदि आज ही लोकसभा के चुनाव हो जाएं, तो बहुसंख्य जनता प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें ही पसंद करेगी। ऐसे राजनेता को ‘चेहरा’ बनाने के बावजूद, देश के गृहमंत्री अमित शाह के घर-घर दरवाजे खटखटाने और गली-मुहल्लों में परचे बांटने के बावजूद, 240 सांसद, मंत्री, नेता और कार्यकर्ताओं की फौज उतारने के बावजूद, भाजपा एक अर्द्धराज्य का चुनाव भी हारती लग रही है, तो उसे अपनी नीतियों और सियासी रणनीतियों पर बार-बार मंथन करना पड़ेगा। मई, 2019 में लोकसभा चुनाव जीता था। दिल्ली की सातों संसदीय सीटें भी जीती थीं। विधानसभा की 65 सीटों पर भाजपा आगे थी। करीब 58 फीसदी वोट उसके पक्ष में थे, लेकिन अब बाजी पलटती हुई लग रही है। लोकसभा चुनाव में प्रचंड और ऐतिहासिक जनादेश हासिल करने के बाद भाजपा को लगातार चुनावी पराजय झेलनी पड़ी है। विश्व की सबसे बड़ी पार्टी की ऐसी अस्वीकृति चिंतनीय है। भाजपा को हिंदोस्तान-पाकिस्तान, देशभक्ति, भारतमाता, शाहीन बाग सरीखे सांप्रदायिक मुद्दों पर पुनर्विचार करना चाहिए। इसके विपरीत केजरीवाल की ‘आप’ तो मात्र 6-7 साल पुरानी पार्टी है। काडर भी सीमित है, क्योंकि संसाधन भी सीमित हैं, लेकिन एक शख्स ने सिखा दिया कि राजनीति कैसे की जाती है? चुनाव कैसे जीते जा सकते हैं? केजरीवाल ने बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा को ही सबसे अहम चुनावी मुद्दे साबित करके दिखाया है। यदि यही अनुमान असल नतीजों में तबदील होते हैं, तो उदाहरण तय हो जाएगा कि लोग काम को ही वोट देते हैं। भावुक और भड़काऊ मुद्दे ज्यादा कारगर साबित नहीं होते। यदि असल नतीजे भी ऐसे ही होते हैं, तो साबित हो जाएगा कि शाहीन बाग, हिंदू-मुसलमान आदि को दिल्लीवालों ने खारिज कर दिया है। यह भी तय हो जाएगा कि नकारात्मक प्रचार के बजाय सकारात्मक अभियान को ही जनता के बहुमत का समर्थन हासिल होता है। केजरीवाल बीते दो साल से रणनीति बना रहे थे और एक-एक काम को लेकर जनता के बीच डिलीवरी तय कर रहे थे। उस रणनीति को अपार जन-समर्थन मिलता लग रहा है। बेशक कुछ सवाल केजरीवाल से भी किए जाएंगे कि दिल्ली अर्द्धराज्य में लोकपाल का क्या हुआ? भ्रष्टाचार कम क्यों नहीं हुआ? कई काम अब भी लंबित क्यों हैं? देश की राजधानी में बसों के रूप में पब्लिक परिवहन पर्याप्त न हो, तो अराजकता फैल जाएगी। आभारी हैं मेट्रो रेल के जरिए आम नागरिक आवाजाही कर रहा है। उसमें ज्यादा अधिकार केंद्र सरकार के पास हैं। सामाजिक सुरक्षा के भी कुछ पहलू हैं, जिनकी अनदेखी की गई है। बहरहाल केजरीवाल की नई सरकार बनती है, तो उम्मीद करते हैं कि जो चीजें छूट गई हैं, उन पर यथाशीघ्र काम शुरू किए जाएंगे।