यष्टीमधु के गुण
इसे मधुयष्टी, मुलहठी, मुलेठी व मधुका भी कहते हैं। इसका बोटेनिकल नाम ग्लिसराईजा गलेवरा है। इस का पौधा दो मीटर ऊंचा होता है, जिस की खेती की जाती है और इसका पौधा दो वर्ष से ज्यादा रहता है तथा मुख्यतया इस की जड़ को औषधीय प्रयोग में लाया जाता है। इसमें ग्लिसराइजिन ग्लिसराइजिक एसिड और गलेबरोलाइड जैसे रासायनिक तत्त्व पाए जाते हैं। मात्राः 2-4 ग्राम पाउडर सुबह शाम गर्म जल से सेवन करें।
गुण व कर्म : मधुयष्टी रसायन, मेधा वर्धक व इम्यूनो बूस्टर है। इस का पाउडर गले के रोगों छाती के रोगों व पेट विकार में काम आता है।
टॉनिक- क्योंकि इस में कई तरह के विटामिन व मिनरल होते हैं इसलिए यह रस रक्तायी धातुओं को बढ़ाती है और टॉनिक का काम करती है।
मेधा वर्धक– यह हमारी एकाग्रता को बढ़ाती है। खोई हुई याददाश्त वापस लाने में सहायक है व दिमागी टॉनिक का काम करती है।
रोगप्रतिरोधी क्षमता वर्धक- मनुष्य के शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाती है तथा बार-बार होने वाली बीमारी में लाभप्रद है।
कास श्वास – खांसी व सांस के रोगों में शहद के साथ लेने से मधुयष्टी बहुत ही लाभकारी है। रुके हुए वलगम को बाहर निकालती है।
गले के रोगों में – गले की दर्द में, गला बैठ जाने में,आवाज फट कर निकलने पर, गाने बजाने वालों का स्वर सुरीला करने में इस के टुकड़े को मुंह में रख कर चूसना चाहिए। यह बहुत ही लाभकारी है।
पेट के रोगों में -मुंह सूखने व प्यास को कम करने में, भोजन पचाने में, एसिडिटी कम करने में,कब्ज को दूर करने व उदर व्रण में बहुत ही लाभकारी है। ज्यादा मात्रा में लेने पर यह हानिकारक भी हो सकती है। इस से रक्तचाप व भार बढ़ जाता है तथा कमजोरी आती है।