चापलूसी के बढ़ते कदम

– रूप सिंह नेगी, सोलन

किसी ने सुंदर शब्दों में कहा है कि प्रशंसक बनो, चापलूस नहीं। भले ही जायज प्रशंसा करना अच्छी बात होती है, लेकिन नाजायज  प्रशंसा करना उतनी ही बुरी बात होती है। कुछ सालों से तथाकथित राजनीति व मीडिया सर्किल में कथिततौर से चाटुकारिता जैसे  कुप्रवृत्तियों का बढ़ता चलन देखे जाने को दुर्भाग्य कहा जाना चाहिए। यह भी सत्य है कि चापलूस ऐसे मौके की तलाश में होते हैं जब उन को चापलूसी करने से अधिकाधिक फायदा होने वाला हो। यह भी जग जाहिर होगा कि देश में कौन-कौन लोग किस-किस की चापलूसी कर अपना काम निकालने में सफल हुए होंगे और कौन-कौन अपना काम निकालने की कोशिश में हो सकते हैं?