निवेश का आश्वासन

निवेश की चर्चाओं में प्रचारित लक्ष्य और समाधानों की फेहरिस्त में वकालत के अवसर, यकीनन हिमाचल को नए दौर में देख रहे हैं। इन्हीं बदलावों के परिप्रेक्ष्य में इन्वेस्टर मीट का आयोजन अब अगर इन्वेस्टमेंट प्रोमोशन अथारिटी के गठन तक पहुंच रहा है, तो पहली बार यह प्रदेश आर्थिक ब्यूरोक्रेसी को चित्रित करने की कोशिश करेगा। निवेश प्रोत्साहन प्राधिकरण का गठन दरअसल एक ऐसा आश्वासन होना चाहिए जो तमाम वर्जनाओं को हटाकर निवेश मैत्री का माहौल तैयार करे। जाहिर है ‘सिंगल विंडो’ के विस्तृत आकार में ऐसे प्राधिकरण की आवश्यकता को समझा जा रहा है, लेकिन इसके प्रारूप की स्वतंत्रता, निष्पक्षता तथा पारदर्शिता ही इसे प्रासंगिक बनाएगी। यह महज निवेश अनुमतियों का शिखर नहीं हो सकता, बल्कि उस धरातल को टटोलने का जरिया हो सकता है, जहां भविष्य का रोजगार, स्वरोजगार, नवाचार, शहरीकरण, नवीनीकरण, अधोसंरचना निर्माण, सेवा क्षेत्र तथा प्रदेश की आर्थिकी का विस्तार अपेक्षित है। ऐसे में पिछले अनुभव से सीखते हुए ऐसी एजेंसियों की कागजी रूपरेखा को व्यावहारिकता के हर हिस्से से जोड़ना होगा। हिमाचल में निवेश के हिसाब से राजस्व विभाग में ढांचागत परिवर्तन की जरूरत, निवेश के उल्लेख तथा ढांचागत गारंटी का होना अति लाजिमी है। वास्तव में निवेश की परीक्षा आर्थिकी की समीक्षा है और जिसका जिक्र राजनीति को ओढ़कर नहीं हो सकता। यह दीगर है कि वर्तमान जयराम सरकार ने कुछ नीतिगत फैसले और फैसलों में सरलता लाने की पहल की है, फिर भी इस दिशा की प्राथमिकताएं तय होनी बाकी हैं। वित्तीय प्रोत्साहन, कम लागत में अधोसंरचना की उपलब्धता, नए व्यापार की स्थापना तथा वर्तमान की बेहतरी के लिए अगर प्राधिकरण का गठन कुछ कर पाता है, तो यह निवेश की जीत होगी। हिमाचल में निवेश भी एक तरह की विचारधारा में फंसा है और जहां आदतन सार्वजनिक क्षेत्र व सरकारी संस्कृति ने निजी क्षेत्र को हाशिए पर रखा। अगर ऐसा न होता तो बदलती सरकारों के बीच ऐसी परियोजनाएं न झूलती, जिनमें निजी क्षेत्र की भागीदारी स्पष्ट है। निवेश प्रोत्साहन प्राधिकरण के गठन में नीति, नियम, लक्ष्य तथा प्रक्रिया को सशक्त व स्वतंत्र करना पड़ेगा। इससे पूर्व धूमल सरकार ने बस अड्डा विकास प्राधिकरण का गठन किया था, लेकिन इसके उद्देश्य व कार्यशैली आज तक असफल है। अगर इस प्राधिकरण का ही सक्षम संचालन होता, तो प्रदेश भर में कम से कम बस अड्डों में ही निवेश हो जाता। इसी तरह हिमाचल में शहरीकरण, औद्योगिक विकास, सेवा क्षेत्र, फूड प्रोसेसिंग तथा पर्यटन विकास के जरिए ही निवेश की अहमियत समझी होती, तो प्रदेश की आर्थिकी परवान चढ़ती। प्रदेश के शहरी आवरण को व्यापारिक, औद्योगिक, पर्यटन-मनोरंजन, प्रशासनिक जरूरतों, आवसीय व्यवस्था, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क, सूचना प्रौद्योगिकी या शिक्षा के हब के रूप में देखा होता तो अब तक निवेश और नए व्यापार का खाका बन चुका होता। हम बीबीएन को औद्योगिक शहर ही नहीं बना पाए, तो इसे आर्थिक राजधानी कैसे बना पाएंगे। प्रदेश के कुछ शहर शिक्षा हब के रूप में उभरे हैं, तो क्या हमारे निवेश की रणनीति ने इसे आर्थिकी के स्वरूप में पुष्ट किया। देश के युवाओं के सामने कोटा, दिल्ली या चंडीगढ़ की अकादमियां अगर आदर्श हैं, तो हर साल प्रदेश के बाहर ज्ञान अर्जित करते करीब पच्चीस हजार बच्चों को प्रदेश में भी तैयार किया जा सकता है। क्या ऐसे निवेश की प्रासंगिकता या गुणवत्ता का मूल्यांकन हुआ। भले ही करीब दो करोड़ पर्यटक हर साल हिमाचल आते हैं, लेकिन इससे जुड़े निवेश को सार्थक व सफल बनाने के लिए कोई प्रयास हुआ। निवेशक के अनेक प्रश्नों के बीच स्पष्ट रणनीति, तत्काल हल, प्रोत्साहन प्रक्रिया, अनुसंधान तथा सूचनाओं का अभाव महसूस किया जाता है। एक अकेला निवेश प्रोत्साहन प्राधिकरण वर्षों के विराम को तोड़ नहीं पाएगा, अतः हिमाचल की हर रुकावट के परिप्रेक्ष्य में विकल्प खोजने होंगे। उदाहरण के लिए हिमाचल में भूमि का सरकारी तौर पर दुरुपयोग हुआ है। अगर सरकारी संपत्तियों तथा सार्वजनिक भूमि के प्रबंधन के लिए राज्य स्तरीय एस्टेट अथारिटी का गठन हो, तो न केवल अतिरिक्त भूमि का पता चलेगा, बल्कि हर उद्देश्य के हिसाब से लैंडबैंक तैयार होगा। हर प्रमुख शहर और गांव को अगर एस्टेट अथारिटी के तहत व्यवस्थित किया जाए, तो नए निवेश की अवधारणा में निजी क्षेत्र को जमीनी आधार, संभावना और भविष्य दिखाई देगा। एक निवेशक बेहतर ढंग से बता सकता है कि पूरे प्रदेश में कहां-कहां उद्योग, आवासीय बस्ती, हाई वे टूरिज्म, हॉट बाजार, ईको टूरिज्म, साइंस सिटी, मनोरंजन पार्क या साहसिक खेलों का ढांचा विकसित हो सकता है। इसी तरह हिमाचल में निवेश पैदा करने के लिए विनिवेश के लिए भी प्राधिकरण बनाया जाए ताकि कल जब पीपीपी मॉडल ही एक मात्र विकल्प बचे, तो आसानी से स्कूल-कालेज या अस्पताल परिसर योजनाबद्ध तरीके से निजी क्षेत्र को सौंपे जा सकें। प्रदेश के दर्जनों रेस्ट हाउस, बस स्टैंड या पर्यटन इकाइयां अगर पीपीपी मोड के तहत विकसित हो जाएं, तो आर्थिकी के संयोग में इजाफे के साथ-साथ सूरत भी बदलेगी।