कर्फ्यू के प्रयोग

कर्फ्यू अपनी ढील के बीच जिंदगी को खुशामदीद कहता है, तो यह सोचने की वजह है कि इसे कितना वक्फा दिया जाए। कर्फ्यू के अपने प्रयोग हैं और ये नित नए पैमाने तय करेंगे। पहले चार घंटे, फिर छह घंटे और अब मात्र तीन घंटे की ढिलाई में विषयों का समाधान खंगाला जाएगा। ढील कितनी हो यह जरूरी नहीं, लेकिन आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति हर सूरत होनी चाहिए। हिमाचल में भले ही कर्फ्यू ढील में सामंजस्य पैदा हुआ है, लेकिन दिक्कतों से सराबोर सुबह का सूरज मांग व आपूर्ति के बीच जीवन की जद्दोजहद भी देख रहा है। कुछ सोशल डिस्टेंसिंग हो भी रही हो, लेकिन खरीददारी के हुजूम में दुकानदारी के उसूल छिन्न-भिन्न हैं। पहला खतरा तो खरीद-फरोख्त में झुंड बने समुदाय को दूर-दूर रखने को लेकर है, तो दूसरी ओर सब्जियों-फलों के उछलते दामों तथा राशन की आपूर्ति को लेकर भी व्यवस्थागत सुधारों की गुंजाइश है। प्रदेश में पिछले कुछ दिनों में ही ऐसी शिकायतों का अंबार लगा है, जहां महंगाई के दंश स्पष्ट हैं। हिमाचल ने जिस प्राथमिकता से लॉकडाउन किया है और अब कर्फ्यू के मार्फत जनता को घर में रहना सिखा रही है, उस एहतिहात का हमेशा स्वागत होगा, लेकिन सड़क से घर का रिश्ता भी समझना होगा। इसी सड़क पर आकर लोगों की जिंदगी चलती है या यूं कहें कि सड़क पर आना मजबूरी भी तो है। इसी सड़क पर बाहरी राज्यों से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति होगी, तो सूचनाओं से लदी अखबारों की सप्लाई होगी। सड़क के दूर तक संपर्क ही देश को जोड़ते हैं, लिहाजा जो हिमाचली बाहर फंस गए, उनकी वापसी का मार्ग भी तो प्रशस्त करना होगा। दूसरी ओर जो चुपके से घर पहुंच गए, उनकी खबर भी तो लेनी होगी। यहीं सड़कों से दूर हरियाली ढूंढते निकले गडरियों के झुंड कहीं जंगल में ही न रह जाएं, यह भी तो सोचना होगा। जाहिर है कितने हिमाचली कहां फंसे हैं, सूचनाओं की ऐसी दरकार को समेटते हुए, उन निगाहों को राहत कौन देगा जो टुकर-टुकर अपनों के लौटने के इंतजार में सूनी हो चुकी सड़क को देख रही हैं। आम हिमाचली को अगर सड़क से दूर रखना है, तो आवश्यक वस्तुओं की होम डिलीवरी शुरू करनी होगी। यह कार्य स्वयंसेवी संस्थाओं के मार्फत नहीं हो सकता, तो प्रशासन सीधा दखल दे। या तो ई कामर्स के कुछ रास्ते खोले जाएं या आवश्यक खाद्य वस्तुओं के थोक व्यापारियों को एरिया आबंटन करके नेटवर्क स्थापित किया जाए। प्रशासन इस तरह खड़े हो चुके वाहनों के मालिकों की मदद लेकर, एक आपूर्ति शृंखला खड़ी कर सकता है। हफ्ते में कुछ दिन किराना, कुछ दिन सब्जी तथा रोजाना दूध-ब्रेड की गाडियां दौड़ सकती हैं या हर गाड़ी से पूर्ण सामग्री उपलब्ध कराई जा सकती है। अभी केवल पांच दिन के कर्फ्यू भुगतान में सरकार को अगर कई उलटफेर करने पड़ रहे हैं, तो जहां जिंदगी के विराम हैं, वहां आरजू को रोक पाना भी तो कठिन है। बंदिशों के पहरे में कानून-व्यवस्था कायम कर रही पुलिस को अनावश्यक छूट न मिले, यह भी तो तय हो। सरकार का अपना फीडबैक सिस्टम कितना भी ताकतवर क्यों न हो, इस समय मीडिया के सार्थक सहयोग को अंगीकार करना होगा। सरकार और सेवा के बीच जानकारियों का सकारात्मक पक्ष अगर मीडिया की भूमिका है, तो इस पहचान में कर्फ्यू के संकल्प का शृंगार भी मौजूद है। अतः कर्फ्यू की सार्थकता व औचित्य को सौ फीसदी साबित किए बिना कोरोना का क्रम व शृंखला नहीं टूटेगी। ऐसे माहौल में कर्फ्यू के बीच फर्ज व सौहार्द का संयम वांछित है।