कर्मवीर डाक्टरों को सलाम

जगदीश बाली

लेखक, शिमला से हैं

यह मानव जाति का एक अति सूक्ष्म जानलेवा वायरस के विरुद्ध संघर्ष है जो पूरे विश्व में मौत का कहर बरपा रहा है। सूर्य के कोरोना की शक्ल से मिलते-जुलते इस वायरस के विरुद्ध चल रहे संघर्ष में सैनिक की तरह पहली पंक्ति में जो आदमी खड़ा है, वह है डाक्टर और उसकी सेना में शामिल हैं नर्सें व स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत लोग। जिस तरह सैनिक सीमा पर व रणभूमि में दुश्मनों से लोहा लेता है और  हमें सुरक्षा का भरोसा दिलाता है, उसी तरह डाक्टर भी इनसानों के जीवन को बचाने के लिए तत्परता से जुटा है…

अपने एक डाक्टर मित्र को हालचाल जानने के लिए फोन किया। उसने कहा, ‘अपने घर की रोशनी का तो पता नहीं दोस्त, अभी तो फिक्र है किसी के घर का चिराग न चला जाए।’ उसकी बात सुनकर मुझे लगा कि किसी ने सच ही कहा है कि जब ईश्वर को लगा कि वह हर जगह पहुंच कर इनसान की मदद नहीं कर सकता, तो उसने संसार में एक स्वार्थहीन व जहीन आदमी को भेजा जिसे हम डाक्टर कहते हैं। कोरोना ग्रसित विश्व में आज ये बात सत्य व प्रासंगिक साबित हो रही है। अपने जीवन की सुख-सुविधाओं को छोड़कर डाक्टर दूसरों को जीवन प्रदान करने में लगातार जुटा है। कोरोना से हुई मौतों को देखकर यही लगता है जैसे लोग किसी युद्ध में मर रहे हों। इस युद्ध में देश के सैनिक नहीं लड़ रहे, न ही ये इनसानों का इनसानों से युद्ध है। यह मानव जाति का एक अति सूक्ष्म जानलेवा वायरस के विरुद्ध संघर्ष है जो पूरे विश्व में मौत का कहर बरपा रहा है। सूर्य के कोरोना की शक्ल से मिलते-जुलते इस वायरस के विरुद्ध चल रहे संघर्ष में सैनिक की तरह पहली पंक्ति में जो आदमी खड़ा है, वह है डाक्टर और उसकी सेना में शामिल हैं नर्सें व स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत लोग। जिस तरह सैनिक सीमा पर व रणभूमि में दुश्मनों से लोहा लेता है और  हमें सुरक्षा का भरोसा दिलाता है, उसी तरह डाक्टर भी इनसानों के जीवन को बचाने के लिए तत्परता से जुटा है। इनसानी जिस्म से इनसानी जिस्म में घर करने वाले कोरोना से वैसे तो हर आदमी संघर्षरत है, परंतु इस युद्ध में डाक्टर ऐसे कमांडो हैं, जो लगातार कोरोना से सीधी टक्कर ले रहे हैं। अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए वे खुद को भी जोखिम में झोंक रहे हैं। कोरोना के कोप से संघर्ष में सबसे अहम भूमिका निभा रहे सफेद कोट पहने हुए ये डाक्टर, नर्स व सहायक स्वास्थ्य कर्मी बड़ी शिद्दत से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। उन्हें देख कर कहा जा सकता है कि ये बेशक खुदा नहीं पर खुदा जैसे लोग जरूर हैं।

लगातार अपने कार्य में व्यस्त इन्हें मालूम ही नहीं कि कब सुबह हुई और कब रात ढली। किसी दिन तो ये सूरज के दर्शन भी नहीं कर पाते। हफ्ते- हफ्ते तक घर नहीं जा पा रहे हैं। और जब जाते हैं तो दूर से ही अपने परिवार के लोगों से बातचीत व राम-सलाम कर लेते हैं। वे ठीक से अपनी पत्नी और बच्चों से भी नहीं मिल पाते। मासूम बच्चे डबडबाई आंखों से कहते हैं, ‘पापा बाहर मत जाओ, बाहर कोरोना है।’ वे खामोश हो कर इस दर्द को अपने दिल में छिपाते हुए फिर से अस्पताल रवाना हो जाते हैं और अपने काम पर लग जाते हैं। उन्हें मरीज को हौसला भी देना है और उन्हें कोरोना से भी बचाना है। उन्हें मरीज का दर्द भी बांटना है और मर्ज की दवा भी करनी है। उन्हें खुद को भी इनफैक्ट होने से बचाना है। कई डाक्टर तो इस जानलेवा वायरस से संक्रमित भी हो चुके हैं व कुछ डाक्टरों की मौत भी हो चुकी है। समझा जा सकता है कि कोरोना का इलाज कर रहे डाक्टरों का काम ऐसा है जैसे उन्हें आग भी बुझाना है और दामन भी बचाना है। सफेद लिबास में कंधे पर स्टेथोस्कोप लटकाए हुए ये भगवान का रूप ही तो हैं।

ऐसे मुश्किल हालात में उसके साथ काम कर रही टीम फरिश्ते की टोली ही लगती है। जिंदगी तो इन्हें भी भगवान ने एक ही दी है, पर सब भूल कर इन्हें तो बस औरों की जिंदगी बचानी है। परिवार तो इनका भी है, पर वक्त ऐसा आन पड़ा है कि अभी सब कुछ भूल कर कोरोना से लड़ना है। चाहे ये खुद घर नहीं जाते, पर औरों के घरों की खुशी न चली जाए, इसलिए अपने घर में मिलने वाली सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं। खेद का विषय है कि हमारे देश के कुछ शहरों में कुछ मकान मालिक डाक्टरों व नर्सों को मकान खाली करने का दबाव बना रहे हैं। दूसरों की जान बचाने वाला डाक्टर कभी किसी की जान के लिए खतरा नहीं हो सकता। उससे ज्यादा कौन समझ सकता है कि कोरोना जैसे घातक वायरस से लड़ाई में उसे खुद को आइसोलेट हो कर रहना है। डाक्टरों व नर्सों से अभद्र व्यवहार की खबरें भी आई हैं। ऐसे विकट समय में ऐसे संवेदनहीन हो कर बर्ताव करना अमानवीय कृत्य है जो अक्षम्य है, फिर ऐसा करने वाला चाहे कोई पुलिसकर्मी हो, मकान मालिक हो या कोई और रसूखदार आदमी हो। कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में यदि हमें जीतना है तो हमें डाक्टरों व नर्सों की सेवाओं को सराहना होगा। ताली, थाली और शंख बजाने से हमारे कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं हो जाती। वास्तव में भूतल पर हमें कोरोना से लड़ रहे इन योद्धाओं को सम्मान व संरक्षण देना होगा। उनके साथ अभद्रता तनिक भी सहनीय नहीं। खुद को खतरे में डालकर वे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। इस कोरोना काल में भले ही समाज के विभिन्न वर्गों के लोग व कर्मी अपनी भूमिका व कर्त्तव्य निभा रहे हैं, परंतु डाक्टर, नर्सें व स्वास्थ्य कर्मी वास्तव में कोरोना से संघर्ष में हमारे महानायक हैं। डाक्टर के सिर पर भले ही ताज नहीं, उनके सीने पर भले ही तगमे नहीं, पर वे सुपर हीरो हैं। इनकी व इनके घरों की सलामती के लिए दुआओं में अनगिनत हाथ उठने चाहिए। इन कोरोना कमांडो व कर्मवीरों के जज्बे, कर्मठता व स्वार्थहीन सेवा को हजारों-लाखों सलाम।